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अर्थ :- फूलोनी सुगंधथी आकर्षित भमराना समुदायना झंकारना गंभीर शब्दो-वड़े वृक्षोनो समुदाय वसन्त-मासना आगमनथी जाणे संतुष्ट थयो न होय तेम गातो हतो। हिन्दी अनुवाद : - पुष्प की सुगंध से आकर्षित भौरों के समूह के गुंजारव से युक्त बसंत मास के आगमन से वृक्ष समुदाय संतुष्ट होकर गा रहे हैं। गाहा :
मयरंद-पिंजराओ विसट्ट-सुगंध-कुसुम-वयणाओ।
वण-राईओ हसंतिव-वसंत-मासागमं द8 ।।४२।। छाया :
मकरंद-पिजरात्-विसृतसुगन्धकुसुमवदनात् ।
वनराज्यो हसन्त्य इव, वसंत-मासागमं दृष्ट्वा ।।४२।। अर्थ :- मकरंदथी पीळा बनेल विकसित-सुगन्धवाळा कुसुम रूपी मुखथी वसंत-मासना आगमने जोई ने जाणे वनराजि हसती न होय तेम लागे छ। हिन्दी अनुवाद :- मकरंद से पीले वर्णवाली, विकसित और सुगन्धित कुसुम पराग से युक्त बसंत मास के आगमन को देख कर वनराजी हँसती है, ऐसा लगता है। गाहा :
दगुणव तरु-नियरं महु-समए बहल-पत्तल-च्छायं । अवमाणिओ पलासो कसिण-मुहो झत्ति संजाओ ।।४३।।
छाया:
दृष्ट्वा इव तरु-निकरं मधु-समये बहल-पत्रल-छायाम् ।
अपमानितः पलासः कृष्णमुखः झटिति सञ्जातः।।४३|| अर्थ :- वसन्त ऋतुमां घणा पांदळावाळा छायायुक्त वृक्षना समूहने जोइने जाणे अपमानित थयो होय तेम पलास जल्दी थी कृष्णमुखवाळो थयो। हिन्दी अनुवाद : - वसन्त ऋतु में छायायुक्त बहुत पत्तों वाले वृक्ष समूह को देखकर अपने को अपमानित समझकर शीघ्र ही पलास कृष्णमुख हो गया। गाहा :
अच्छउ ता फल-काले फुल्लिम-समएवि कालिमा वयणे।
इय कलिउंब पलासो चत्तो पत्तेहिं किविणोव्व ।। ४४।। छाया :
आस्तां तस्मात् फल-काले फुल्लता समयेऽपि कालिमा वदने । इति कलयित्वा इव पलासः त्यक्तः पत्रैः कृपणेव ||४४||
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