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________________ अर्थ :- हवे शांतिपूर्वक विचारीने एक क्षण पछी बंधुदत्त कहे छे हा ! हवे मे जाण्यु के सिद्धायतनमा यात्राओ शरू थई छ । हिन्दी अनुवाद :- अब एक क्षण सोचकर बंधुदत्त ने कहा हाँ अब मुझे मालूम हुआ की सिद्धायतन में यात्राएं प्रारम्भ हुई हैं। गाहा :- वसन्त ऋतुनु वर्णन पसरंत-सुरहि-मलयानिलुद्धरो जेण वट्टइ वसंतो। किसलइय-सयल-तरु-वर-विरायमाणोरु-वण-नियरो ।।३९।। छाया : प्रसरत्-सुरभि-मलयानिलुद्धरो येन वर्तते वसन्तः। किसलयति सकल-तरुवर-विराजमानोरु-वन-निकरः ।।३९|| अर्थ :- फेलाती सुगंधयुक्त मलयपर्वतना पवनथी वसन्तऋतु शोभे छे अने समस्त श्रेष्ठवृक्षोथी शोभतु विशाल वन समूह किसलयनु आचरण करे छे। हिन्दी अनुवाद :- फैलती सुगंधयुक्त मलयपर्वत के पवन से वसन्त ऋतु सुन्दर लगती है और सम्पूर्ण श्रेष्ठवृक्षों से शोभायमान विशाल वनसमूह किसलय का आचरण कर रहा है। गाहा :- अविय। वायंत-मलय-मारुय-चलंत-पत्तल-विसाल-साहाहिं । नच्चंतिव तरुणो पहरिसेण महु-मास-आगमणे ।।४।। छाया :- अपि च वात-मलय-मारुत-चलत्-पत्रल-विशाल-शाखाभिः । नृत्यंतीव तरवः प्रहर्षेण-मधुमासागमने ||४०।। अर्थ :- अने वळी वाई रहेला मलयना पवनथी चालता युवानो (वृक्षो) मधुमासना आगमनमा खुश थया होय तेम जाणे नृत्य करता ज होय ? हिन्दी अनुवाद :- तथा बहते हुए मलय पवन से झूलते वृक्ष मधुमास के आगमन से जैसे खुश हो गए हों वैसे नृत्य करने लगे हैं। गाहा : कुसुमाऽऽ मोयाऽऽयड्डिय-अलि-उल-झंकार-गहिर-सद्देण । गायंतिव तरु-नियरा । वसन्त-मासागमे तुट्ठा ।।४१।। छाया: कुसुमाऽऽमोदाऽऽकृष्ट-अलि-कुल-झंकार-गंभीर-शब्देन । गायन्तीव तरु-निकरा वसन्त-मासागमे तुष्टाः ।।४।। 67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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