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छाया :
तत्राऽस्ति दक्षिणायां श्रेण्यां खेचर-लोक-प्रतिपूर्णम् । भ्रमित खेचराङ्गना-गण-नूपुर-झंकार-रव मुखरम् ।।१८।। उत्तुंग-मकर-तोरण-असमान द्वार-देश-शोभाभिः | नित्यं विराजमानं विद्याधर-भवन-वृन्दैः ।।१९।। सकल-त्रिलोक-लक्ष्मी-निज-निलयं रत्नसंचयं नाम ।
नगरं नगरगुणाढ्यं प्रमुदित-नर-नारि-संघातम् ।।२०।। अर्थ :- त्यां ते पर्वतनी दक्षिण श्रेणिमा विद्याधरो थी परिपूर्ण, भमवाना स्वभाववाळी विद्याधरोनी स्त्रीओनां समुदायनां नूपुरना झंकारना अवाज थी मुखरित बनेल, ऊंचा मकराकार तोरणोथी अपूर्व द्वार देशनी शोभावाला विद्याधरोना भवनोना समूह वड़े हमेशा शोभतु, नगरना गुणोथी युक्त, प्रमुदित नर-नारिना समूहवाळु संपूर्ण त्रणे लोकनी लक्ष्मीना पोताना घर समान रत्नसंचय नामनुं नगर छ। हिन्दी अनुवाद :- वहाँ पर्वत की दक्षिण श्रेणि में विद्याधरों से परिपूर्ण, घूमने के स्वभाववाली विद्याधर स्त्रियों के पायल की आवाज से मुखरित, ऊँचे मकराकर तोरणों से सुन्दर, विद्याधरों के भवनों में से मनोहर, नगर गुणों से युक्त, आनन्दित नर-नारि के समूहवाला, तीनों लोक की लक्ष्मी के गृह-तुल्य रत्नसंचय नाम का नगर है। गाहा :
तम्मि य पुरम्मि बहुविह-विज्जाहर-सय-सहस्स-संकिन्ने ।
परिवसइ गुण-निहाणो, पवणगई नाम वर-खयरो।।२१।। छाया :
तस्मिंश्च पुरे बहुविध-विद्याधर-शत-सहस्र-संकिर्णः । __ परिवसति गुण निधानः पवनगति नामा वर-खेचरः ||२१|| अर्थ :- ते नगरमा घणा-प्रकारना लाखों विद्याधरोथीयुक्त गुणनिधान पवनगति नामनो श्रेष्ठ विद्याधर रहे छे। हिन्दी अनुवाद :- उस नगर में अनेक प्रकार के लाखों विद्याधरों से युक्त गुणनिधान पवनगति नाम का श्रेष्ठ विद्याधर रहता है। गाहा :
विन्नाण-विणय-जुत्ता पइणो अच्चंत-वच्छल-सहावा ।
निय-परिमल-जिय-बउला, बउलवई नाम से भज्जा ।। २२।। छाया :
विज्ञान-विनय, युक्ता पत्युः अत्यंत-वत्सल-स्वभावा । निज-परिमल-जित-बकुला बकुलवती नाम तस्य भार्या ||२२||
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