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________________ अर्थ :- सारी रीते कहेवायेलो ते कहे छे। “रागधी मोहित मनवाळा, अदीर्घदर्शि जीवोने आ संसार मां आपत्तिओ सुलभ ज छे।” युग्मम् हिन्दी अनुवाद :- अपने दुःख को कहता है, "राग से मोहित मनवाले अदीर्घदर्शी जीवों को इस संसार में आपत्तियाँ सुलभ ही हैं। गाहा : संसार सागरम्मी परिब्भमंताण भद्द ! जीवाणं । न हु चोज्जमावयाहिं अनिजंतिय- करण वग्गाणं ।।४।। छाया : संसार सागरे परिभ्रमन्तानां भद्र ! जीवानाम | न खलु चोद्यमापद्भिः अनियंत्रितकरणवर्गाणाम् ||४|| अर्थ :- अनियन्त्रित इन्द्रिय ना समूहवाळा, संसार सागरमा भमता जीवोने हे भद्र ! आपत्तिओ वड़े शुं पूछवुं ? हिन्दी अनुवाद :हे भद्र ! अनियन्त्रित इन्द्रियोंवाले संसार सागर में भटकते जीवों के लिए आपत्तिओं का पूछना ही क्या ? गाहा : पुव्व-कय- कम्म- दोसा दुक्खं सव्वंपि जायइ जियाण । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमेत्तं परो होइ ।।५।। छाया : पूर्वकृत कर्मदोषात् दुःखं सर्वमपि जायते जीवानाम् । अपराधेषु गुणेसु च निमित्तमात्रं परो भवति ||५|| अर्थ :- पूर्वे करेला कर्मना दोषथी बधा जीवोने दुःख नी प्राप्ति थाय छे। अपराधमा अने गुणोमां बीजा निमित्तमात्र छे । हिन्दी अनुवाद :- पूर्वकृत कर्म के दोषों से ही सभी जीवों को दुःख का अनुभव होता है, अपराधों में और गुणों में दूसरे तो निमित्त मात्र ही हैं। गाहा : परमत्थओ न केणइ सुहं व दुक्खं व कीरइ नरस्स । पुव्व- कयमेव कम्मं सुह- दुह-जणणम्मि तल्लिच्छं ।। ६ ।। छाया : परमार्थतः न केनाऽपि सुखं वा दुःखं वा क्रियते नरस्य । पूर्वकृतमेव कर्म सुख-दुःख-जनने तत्परम् ।।६।। अर्थ :- परमार्थं थी मनुष्यना सुख-दुःख कोईना वड़े पण कराता नथी । पण पूर्वे करेला ज कर्म सुख-दुःख उत्पन्न करवामां समर्थ छे । Jain Education International 57 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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