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________________ हिन्दी अनुवाद :- परमार्थ से औरों द्वारा मनुष्य को सुख-दु:ख नहीं दिया जाता किन्तु पूर्वकृत कर्म से ही सुख-दुख प्राप्त होते हैं। गाहा : तत्तो य मए भणियं एवं एयंति नत्थि संदेहो । तहवि हु विसेस-कारण-वियाणणे अम्ह इच्छत्ति ।।७।। छाया: ततश्च मया भणितं एवमेवेति नास्ति सन्देहः | तथाऽपि खलु विशेष-कारण-विज्ञाने मम इच्छेति ।।७।। अर्थ :- त्यारपछी मारावड़े कहेवायु आ प्रमाणे ज छे एमां कोई सन्देह नथी। तो पण निश्चे विशेष कारण जाणवामांटे मारी इच्छा छ। हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् मेरे द्वारा कहा गया - "ऐसा ही है इसमें कुछ सन्देह नहीं है, फिर भी विशेष कारण जानने की मेरी जिज्ञासा है।" गाहा :- आपत्ति कारण कथन अह भणइ भो सुंदर ! जइ एवं सुटु तुम्ह निब्बंधो । ता एग-मणो होउं साहिज्जंतं निसामेहि ।।८।। छाया: अथ भणति भो सुन्दर ! यदि एवं सुष्ठ तव निर्बन्धः । तत एकमनो भूत्वा कथ्यमानं निशाम्य ।।८।। अर्थ :- हवे ते कहे छे--हे सुंदर ! जो आ प्रमाणे तमारो सारो एवो आग्रह छे तो एकाग्र मन थई ने कहेता एवा मने सांभळ।। हिन्दी अनुवाद :- अत: वह कहता है - "यदि आपका ऐसा ही आग्रह है तो आप एकाग्र-मन से सुनिए, मैं कहता हूँ। गाहा :- वैताढ्य पर्वत, वर्णन अत्थेथ भरह-खेत्ते विक्खाओ खेयरावली-गम्मो । तुंगोव्व रुप्प-पुंजो दस-दिसि-पसरंत-कंतिल्लो ।।९।। झर-झर-झरंत-निज्झर- हुंकार-रवेहिं बहिरिय दियंतो । मयरंद-पाण-लंपड-अलि-वलय-विरायमाण-वणो ।।१०।। वहमाण-वाहिणीणं दिसि-दिसि सुव्वंत-खलहरा-सद्दो । ठाणे ठाणे विज्जाहरोरु-पुर-पंति-सोहिल्लो ।।११।। विज्जा-पसाहणुज्जय-विज्जाहर-संनिरुद्ध-एगंतो । वर-सिद्धाययणेहिं परिमंडिय-चूलिया-सिहरो ।।१२।। 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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