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________________ श्रीमद्धनेश्वरमुनीश्वरविरचितं सुरसुंदरीचरीअं तइओ परिच्छेओ आपत्ति पृच्छा गाहा : अह सोवि मए पुट्ठो केण तुमं एरिसाए धाराए । खित्तो सि आवयाए केण व कज्जेण भद्द ! मुहा ? ।।१।। संस्कृत छाया : अथ सोऽपि मया पृष्टः केन त्वं ईदृश्यां धारायाम् । क्षिप्तोऽसि आपदि केन वा कार्येण भद्र ! मुधा? ||१|| गुजराती अर्थ :- हवे ते पण मारा वड़े पूछायो - हे भद्र ! तुं कोना बड़े आवाप्रकारनी पृथ्वी पर क्या कारण वड़े आपत्तिमां फेंकायेलो छे । हिन्दी अनुवाद :- अब वह भी मेरे से पूछा गया - हे भद्र ! तूं ऐसी भूमि पर किसके द्वारा तथा किस कारण से आपत्ति में फेंका गया है ? गाहा : एवं च पुच्छिओ सो सदुक्खमइदीहरं च नीससिउं । चित्तभंतर-गुरु-दुक्ख-सूयगं मोत्तुं अंसु-जलं ।।२।। छाया : एवं च पृष्टः सः स्वदुक्खमतिदीर्घ च निःश्वस्य । चित्ताभ्यंतर-गुरु-दुक्ख-सूचकं मुक्त्वा अश्रु-जलम् ||२|| अर्थ :- आ प्रमाणे पूछायेला तेणे अतिदीर्घ निःसासो मूकीने, चित्तनी अंदर रहेला मोटा दुःखना सूचक अश्रु जलने मूकिने पोताना दुःखने - हिन्दी अनुवाद :- इस तरह पूछा गया हुआ उसने अतिदीर्घ नि:श्वास छोड़कर, चित्त के अंदर रहे हुए बड़े दु:ख के सूचक अश्रुजल को छोड़कर, अच्छी तरह से - गाहा : अह सो भणइ सुभणिओ संसारे राग-मोहिय-मणाणं । सुलहाओ आवयाओ जीवाण अदीह-दंसीणं ।।३।। युग्मम् छाया: अथ सो भणति सुभणितः संसारे राग-मोहित-मनसाम् | सलब्धा आपदो जीवाना-मदीर्घदर्शिनाम् ||३|| 56 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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