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साहित्य सत्कार
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मुनि श्रीमणिभद्र जी के प्रवचन लोगों को सहज ही प्रभावित करेंगे और सुधीजन इसे आत्मसात कर लाभान्वित होंगे।
- ज्योतिमा (शोध छात्रा)
७. जैन कर्म सिद्धान्त और मनोविज्ञान, लेखक - डॉ० रत्नलाल जैन, प्रकाशक- बो० जैन पब्लिशर्स प्रा० लि०, १९२१ / १० चूनामण्डी, पहाड़गंज नई दिल्ली, पुनर्मुद्रण- २००४, पृष्ठ- २८२, मूल्य- २२५/
भारतीय दर्शन जीवन का दर्शन है। जीवन की व्याख्या करना एक जटिल कार्य है। कर्मवाद इसी व्याख्या का एक सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। प्रस्तुत पुस्तक लेखक के शोध-प्रबन्ध पर आधारित है। इसमें जैन कर्म - सिद्धान्त एवं मनोविज्ञान पर सूक्ष्मता प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक आठ अध्यायों में विभाजित है । प्रथम अध्याय में भारतीय दर्शन में कर्म सिद्धान्त पर प्रकाश डाला गया है। इसमें वैदिक, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में विवेचित कर्म सिद्धान्त की विवेचना की गई है। द्वितीय अध्याय में जैन कर्म सिद्धान्त की विशेषताओं का सविस्तार वर्णन है। जीव और पुद्गल, कर्म वर्गणा, कर्म के भेद एवं उनके आधार की विवेचना की गई है। तृतीय अध्याय में कर्म-बंध के कारणों का वर्णन है। इसमें आस्रव, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश, पाप-पुण्य आदि पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय में कर्म की अवस्थाओं का वर्णन है। पंचम अध्याय में ज्ञानमीमांसा पर आधुनिक मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में प्रकाश डाला गया है। इसमें ज्ञान की महिमा, प्रत्यक्ष - परोक्ष ज्ञान, स्मृति, जाति स्मृति ज्ञान एवं जैन दर्शन में स्वप्न विज्ञान नामक शीर्षक विवेचित हैं। षष्ठ अध्याय में आधुनिक मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भाव जगत् का वर्णन है। सप्तम अध्याय में शरीर - संरचना को आधुनिक शरीर विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित किया गया है। अष्टम अध्याय में आप स्वयं अपने भाग्य - कर्म - रेखा को बदल सकते हैं, शीर्षक के अन्तर्गत लेखक ने अपना सबल विचार प्रस्तुत किया है। अन्त में उपसंहार एवं ग्रन्थ सूची है। इसप्रकार यह पुस्तक सुधी पाठकों, जैन धर्म दर्शन के प्रेमियों एवं शोध छात्रों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।
- डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय
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८. सिरिकुम्मापुत्तचरिअं अनु० डॉ० जिनेन्द्र जैन, प्रका० जैन अध्ययन एवं सिद्धान्त शोध संस्थान, श्रीपिसनहारी मढ़िया, जबलपुर, म०प्र०, संस्करण प्रथम २००४, आकार- डिमाई, पृष्ठ- ८८, मूल्य- १००/
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साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है । कवि के अन्तर्मन से प्रस्फुटित विचारों की श्रृंखला को जब एक सूत्र में पिरोया जाता है तो कविता का जन्म होता है । अनन्तहंस कृत सिरिकुम्मापुत्तचरिअं प्राकृत साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ
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