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________________ १७८ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६ / जनवरी - जून २००५ पो० मदनगढ़, जिला - अजमेर (राजस्थान) आकार - डबल डिमाई, पृष्ठ- ४७२, मूल्य- पठन-पठान श्री महाप्रभाश्री जी म०सा० उन महान् विभूतियों में से एक थीं जिनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। म०सा० के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्बन्धित ज्योति स्वरूप यह स्मृति ग्रन्थ कुल पाँच खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड 'श्रद्धार्चना' के नाम से है। इस खण्ड में श्रद्धालुओं द्वारा पूज्याश्री जी म०सा० के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलियाँ दी गई हैं जो गद्य एवं पद्य दोनों में हैं। द्वितीय खण्ड का शीर्षक अभिनन्दनीय व्यक्तित्व है। इस खण्ड में म०सा० के व्यक्तित्व की आभा को प्रकट करने वाले प्रेरक प्रसंग उद्धृत हैं। तृतीय खण्ड का शीर्षक'व्यक्तित्व के प्रतिबिम्ब हैं एवं चतुर्थ खण्ड का शीर्षक विज्ञता' है। चतुर्थ खण्ड के अन्तर्गत म०सा० के संयमी जीवन चरित्र, उनके धार्मिक क्रिया-कलापों और स्वाध्याय से सम्बन्धित विषयों का वर्णन है। पंचम खण्ड का शीर्षक 'विविधा' है। इसमें पौरवाल जाति की उत्पति, श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास, पूज्याश्री को समर्पित अभिनन्दन-पत्र एवं चातुर्मासों की सूची आदि दी गई है। इस प्रकार प्रस्तुत स्मृति ग्रन्थ म०सा० के जीवन दर्शन पर केन्द्रित है। म०सा० के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए यह स्मृति ग्रन्थ उपयोगी है। ज्योतिमा (शोध - छात्रा ) ६. आत्मानुसन्धान, प्रवक्ता - श्री मणिभद्र मुनि 'सरल', प्रका० कोमल प्रकाशन, C/o विनोद शर्मा, प्रेमनगर दिल्ली - ८, आकार - डिमाई, पृष्ठ- २००, मूल्य- ६०/ 'आत्मानुसन्धान' मुनि श्री मणिभद्र जी म०सा० के प्रवचनों का संकलन है। धनबाद में चातुर्मास के समय युवासन्त मुनि मणिभद्र जी द्वारा समय-समय पर दिए गए प्रवचन इस पुस्तक मे संकलित हैं। यूँ तो यह पुस्तक देखने में छोटी प्रतीत होती है परन्तु इसका एक-एक कथानक अपने आप में व्यापक रूप समेटे हुए है। वस्तुतः यह गागर में सागर है। प्रायः प्रवचन दार्शनिक एवं कठिन शब्दों से युक्त होते हैं जिसे आमजन के लिए आत्मसात करना दुरूह होता है । मुनिश्री ने जीवन के सत्य को इन प्रवचनों के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया है। प्रवचन अत्यन्त ही सरल भाषा में है। भाषा शैली विशिष्ट है जिसमें वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक तथा संवाद शैली का प्रभावी ढंग से प्रयोग हुआ है। प्रवचनों के प्रेरणादायी प्रसंग, उनका सरल एवं सुबोध भाषा में विश्लेषण हमें जीवन-दर्शन की मौलिकता का दर्शन कराता है। गुरु के आत्मज्ञान की लौ जब हृदय को स्पर्श करती है तभी चेतना जागृत होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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