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________________ १८० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ है। इसमें कुल १९९ श्लोक हैं। यह एक धार्मिक कथा काव्य है। इसकी प्रमुख विशेषता है- सरलता। सामान्य पाठक सहजता से इसवे. कथ्य को आत्मसात कर सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में प्रस्तावना के अन्तर्गत इस कृति का कर्ता, समय और स्थान, पुस्तक का सारांश, मूलाधार, प्राकृत कथा-साहित्य की संक्षिप्त परम्परा, धर्मकथा, भाषा आदि पर प्रकाश डाला गया है। परिशिष्ट के अन्तर्गत गाथानुक्रमणिका, ग्रन्थ में उद्धत पात्रों से सम्बद्ध कथाएँ, अतिरिक्त गाथाएँ एवं जीव द्वारा क्षय की जाने वाली प्रकृतियों की विवेचना की गई है। आशा है साहित्य प्रेमी पाठक एक बार इसे अवश्य पढ़ेंगे। - डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय ९. क्या विद्युत (इलेक्ट्रीसिटी) सचित्त तेउकाय है? ३. लेखक: प्रो० मुनि महेन्द्र कुमार, प्रका० जैन विश्वभारती, लाडनूं, राजस्थान, प्रथम संस्करण- मार्च २००४, आकार डिमाई, पृष्ठ- २९८, मूल्य- ८०/ प्रो० मुनि महेन्द्र कुमार रचित यह पुस्तक अपने आप में एक अनूठी रचना है। प्राचीन समय से ही जैन परम्परा में अग्नि को सजीव पदार्थ माना गया है जिसका प्रयोग साधु-साध्वी के लिए वर्जित है। अब प्रश्न उठता है कि क्या विद्युत भी सजीव है? जैन आगमों में तो अग्नि की विस्तृत चर्चा है और उसे सजीव मानकर साधुसाध्वी के लिए प्रयोग वर्जित किया गया है। परन्तु इलेक्ट्रीसिटी तो आधुनिक विज्ञान की उपज है। प्रश्न उठता है कि इसे सजीव माना जाय या निर्जीव? प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान लेखक ने इसी विषय पर विचार किया है। पुस्तक के विषय के प्रतिपादन को दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में जैन दर्शन, आगम एवं अन्य साहित्य तथा विज्ञान में इलेक्ट्रीसिटी, लाईटिंग तथा अग्नि इस विषय का सैद्धान्तिक विवेचन है। इसके अन्तर्गत जैन दर्शन में पद्गल, जीव और पुद्गल का सम्बन्ध, विज्ञान में पुद्गल, मनुष्य शरीर में इलेक्ट्रिक उर्जा, विज्ञान की दृष्टि में विद्युत, अग्नि का स्वरूप, आकाशीय विद्युत, इलेक्ट्रीसिटी और अग्नि, बल्ब निर्माण की प्रक्रिया, और ट्यूबलाईट की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन है। द्वितीय भाग में प्रश्नोत्तर के माध्यम से जिज्ञासाओं का वैज्ञानिक तरीके से समाधान है। परिशिष्ट-१ में सजीव-निर्जीव मीमांसा को प्रस्तुत किया गया है। परिशिष्ट-२ में एटॉमिक टेबल, एवं परिशिष्ट-३ में संदर्भ ग्रन्थ-सूची है। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि प्रो० मुनिश्री महेन्द्र कुमार लिखित यह पुस्तक रोचक एवं अनेक प्रश्नों का विस्तृत समाधान करने वाली है। धर्म-दर्शन एवं विज्ञान में रुचि रखने वाले सुधी पाठकों के लिए यह पुस्तक अवश्य ही पठनीय है। - डॉ.राघवेन्द्र पाण्डेय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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