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जैन-जगत् : १७५
• विजेता प्रतियोगी को पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में एक सादे समारोह के
अन्तर्गत सम्मानित किया जायेगा। अन्तिम तिथिः इस निबन्ध प्रतियोगिता के लिये आलेख ३०अक्टूबर २००५ तक भेजे जा सकते हैं। निबन्ध भेजने का पता :
संयोजक, निबन्ध प्रतियोगिता - २००४ पार्श्वनाथ विद्यापीठ, आई० टी० आई० रोड, करौंदी, वाराणसी-२२१००५ (उ.प्र.),
दूरभाषः ०५४२-२५७५५२१,२५७५८९० नोटः जिन प्रतिभागियों ने इसके पहले के विज्ञापन के अनुसार अपना निबन्ध भेज दिया है, उन्हें पुनः निबन्ध भेजने की आवश्यकता नहीं है । यह विज्ञापन दुबारा हमें इस लिये करना पड़ रहा है क्योंकि ग्रुप "ए" में मात्र दो निबन्ध ही आ पाये थे । उन सभी प्रतिभागियों से हम क्षमा प्रार्थी हैं जिनके निबन्ध हमें प्राप्त हो चुके हैं किन्तु परिणाम अभी तक नहीं निकल पाया है ।
परहित प्रवृत्ति सबसे बड़ी योग्यता एक बड़े बौद्ध संघाराम के लिए कुलपति की नियुक्ति की जानी थी। उपयुक्त विद्या और विवेकवान आचार्य को छाँटने का ऊहापोह चल रहा था। तीन सत्पात्र सामने थे। उनमें से किसे प्रमुखता दी जाए, यह प्रश्न विचारणीय था। चुनाव का काम महाप्रज्ञ मौदगल्यायन को सौंपा गया।
तीनों को प्रवास पर जाने का निर्देश हुआ। कुछ दूर पर उस मार्ग में काँटे बिछा दिए गए थे।
संध्या होने तक तीनों उस क्षेत्र में पहुंचे। काँटे देखकर रुके। क्या किया जाए? इस प्रश्न के समाधान में एक ने रास्ता बदल लिया। दूसरे ने छलाँग लगाकर पार पाई। तीसरा रुककर बैठ गया और काँटे बुहारकर रास्ता साफ करने लगा, ताकि पीछे आने वालों के लिए वह मार्ग निष्कंटक रहे; भले ही अपने को देर लगे।
परीक्षक मौदगल्यायन समीप की झाड़ी में छिपे बैठे थे। उन्होंने तीनों के कृत्य देखे और परीक्षाफल घोषित कर दिया। तीसरे की, दूसरों के लिए रास्ता साफ करने की विद्या सार्थक मानी गई और अधिष्ठाता की जिम्मेदारी उसी के कंधे पर गई।
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