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श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५
(क) अनिवार्य तथा निवार्य हिंसा
सभी जीव अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं। निसर्ग की व्यवस्था ऐसी ही है। निसर्ग के नियमों को सक्ष्मता से समझकर उनके अनुसार किया गया वैयक्तिक तथा सामाजिक आचार ही सदाचार है। वाचक उमास्वामी ने हिंसा की जो परिभाषा दी है उसी पर सदाचार नियम आधारित किये जा सकते हैं। प्रमादवश तथा राग-द्वेष आदि कषायों से प्रेरित होकर किसी जीव को पीड़ा देना ही हिंसा है। इसमें मनोवृत्ति का बड़ा महत्त्व है।
खेती, गृह-निर्माण आदि कामों में अनिवार्य रूप से हिंसा होती है। यथासम्भव अनावश्यक हिंसा को टालने पर ऐसे जीवनावश्यक कामों में की गयी हिंसा से मानसिक क्षोभ नहीं होता। आवश्यक मात्रा में अपनी रक्षा के लिए होने वाली हिंसा भी पापकर्म नहीं है। यद्यपि यह नियम स्थूल रूप से सबको ग्राह्य है तथापि आधुनिक तंत्रज्ञान की निरन्तर बढ़ती क्षमता को देखते हुए इस पर भी पुनर्विचार करना होगा। मलेरया, डेंगू आदि भयानक बीमारियां फैलानेवाले मच्छरों से बचने के लिए कुछ ऐसे कीटनाशक बनाये गये हैं जिनके प्रयोग से हानिकारक कीड़ों के साथ अन्य जीव भी मरते हैं। इस प्रकार विविध वनस्पतियों का परागसिंचनं करनेवाले कई प्रकार के कीट नष्ट होकर प्राकृतिक सन्तुलन में बाधा पहुंचाते हैं। फल-सब्जियों की रक्षा के लिए प्रयुक्त कीटनाशक निसर्ग में विद्यमान आहार श्रृंखला के जरिये हमारे आहार में भी आते हैं और कई प्रकार की बीमारियों के कारण बनते हैं। अंततोगत्वा इससे मानव को ही हानि पहुंचती है। यद्यपि खेती, गृह-निर्माण तथा रोगों से अपनी रक्षा करना पापकर्म है तथापि इनमें होने वाली हिंसा आवश्यकतानुसार न्यूनतम प्रमाण में रखना ही हितकारक है। इससे मानसिक ग्लानि न होने के साथ-साथ प्राकृतिक संतुलन भी यथावत् रहता है।
निसर्ग नियम के अनुसार मानव का आहार वनस्पतिजन्य है। यद्यपि आदिमानव के आहार में मछली, मांस आदि का समावेश था तथापि सभ्यता के विकास में उसका प्रमाण कम हुआ है। आधुनिक विज्ञान भी शाकाहार को ही श्रेष्ठ मानता है। परन्तु अब भी कुछ प्रदेश में परम्परा से सामिष आहार निर्दोष माना जाता है। तंत्रज्ञान की प्रगति के साथ अब बड़ी मात्रा में मछली पकड़ने और मुर्गी आदि पालने के तकनीक विकसित हुई है। खास नस्ल की कुक्कुट जाति आनुवंशिक अभियांत्रिकी (genetic engineering) द्वारा पैदा की गयी है जिससे मांस का प्रमाण अधिक तथा अस्थियों का प्रमाण कम होता है। ११ बजार में इसकी कीमत सामान्य नस्ल की अपेक्षा अधिक है। सामान्य लोग, इस तरह के मुर्गी पालने में कितनी बर्बर हिंसा होती है, यह नहीं जानते। आधुनिक पोल्ट्री फार्मों में मुर्गे-मुर्गियों को दिन के २२ घंटे रोशनी में रखना
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