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जीवदया: धार्मिक एवं वैज्ञानिक आयाम :
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पड़ता है ताकि वे अधिक दाना खाकर जल्दी बढ़े। इनकी हड्डियां कमजोर होने के कारण अस्थिभंग (future) होते हैं जिनका कोई इलाज नहीं किया जाता। इस प्रकार इन्हें आमरण वेदनामय जीवन बिताना पड़ता है। कुक्कुट जाति की औसत आयु दस साल के लगभग है परन्तु पोल्ट्री फार्म के कुक्कुट ६-७ महीने की अवस्था में ही मारे जाते हैं। मछली पकड़ने के यंत्रचालित बड़े-बड़े जालों मे कई प्रकार के समुद्री जीव फंसते हैं जो खाये नहीं जाते। उन्हे फेंक दिया जाता है या कम्पोस्ट जैसे खाद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रकार आधुनिक मुर्गी पालन, मच्छीमारी आदि उद्योगों में बड़ी मात्रा में हिंसा होती है। ऐसी स्थिति को देखते हुए पश्चिमी देशों में भी, जहां मांसाहार रूढ़िसम्मत माना गया है, अब शाकाहार का समर्थन करने वालों की संख्या बढ़ रही है।
(ख) वैज्ञानिक दृष्टिकोण
मानव विकास के दौरान उसकी जरूरतों में बहुत बदलाव आया है। पालतू जानवरों से हमें कई उपयोगी उत्पाद मिलते हैं जो आज के सन्दर्भ में अनिवार्य बन गये हैं। खेती, माल ढुलाई आदि में हम जानवरों पर निर्भर हैं। क्या दूध, ऊन जैसे प्राणिजन्य उत्पाद पापकर्म हैं? यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह स्पष्ट होगा कि सभी जानवरों के प्रति हमारी नैतिक बाध्यता एक जैसी नहीं है। इस सन्दर्भ में जानवरों का यह वर्गीकरण प्रसंगोचित लगता है-१.आश्रित, २.दमयित, ३.स्वतन्त्र।
१. आश्रित प्राणी पूर्णतया मानव पर निर्भर हैं। यद्यपि मूलत: ये जानवर जंगली अवस्था में ही विकसित हुए थे, तथापि मानव ने अपने लिए इनका दमन किया और अन्तत: वे मानव के आश्रित बन गये। अब ऐसे जानवर स्वतंत्र रूप से वन्य अवस्था में जीवित नहीं रह सकते। गाय, भैंस, कुत्ते, ऊंट, घोड़े, भेड़ आदि कई प्राणी इस वर्ग में आते हैं।१२ अब इनके हित की रक्षा मानव की जिम्मेदारी है। इनके बारे में अंशत: अनुबद्धतावाद न्यायोचित लगता है। दूध, ऊन जैसे उत्पाद लेना तथा बदले में उनके अन्न, आश्रय एवं जरूरत पर पशुवैद्यकीय चिकित्सा का दायित्व मानव पर है। कुत्तों तथा घोड़ों की वफादारी के कई हृदयंगम किस्से प्रसिद्ध हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे जानवर अपने मालिक के प्रति कृतज्ञ हैं, अतः हम समझ सकते हैं कि उन्हें मानव के साथ अनुबन्ध मंजूर है। यदि हम गोवंश के पूर्ण योगक्षेम का उत्तरदायित्व लें तो दूध जैसे उत्पाद लेने में कोई मानसिक ग्लानि नहीं हो सकती। छोटे पैमाने पर रखे गये डेरी फार्म में अनुबद्धतावाद का अनुसरण हो सकता है। किसान अपनी गाय भैंस आदि आश्रित जानवरों को नाम से पहचानते हैं तथा परिवार के सदस्यों की तरह उनका परिपालन करते हैं। बड़े डेरी फार्मों में जानवरों के नाम नहीं होते। उन्हें गिनाने के लिए लोहे की गरम सलाई से नंबर दागे जाते हैं। यह घोर
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