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________________ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००४ प्राकृतविद्या (अक्टूबर-दिसम्बर, २००२) के मुख पृष्ठ पर एक नग्न योगी की कायोत्सर्ग ध्यान मुद्रा में स्थित मूर्ति का चित्र दिया है, जो यूनान के एथेंस नगर प्राप्त हुई है, वहाँ यह 'अमृतशिला' की प्रतिमा के रूप में विख्यात है। जर्मन प्राच्य वास्तुशास्त्र के अन्वेषकों ने इस प्रतिमा को ई० पू० छठी शताब्दी का कहा है। यह निर्ग्रन्थ मुद्रा का मूर्ति - शिल्प है। ४ इतिहास-प्रसिद्ध तथ्य है कि सिकंदर के अनुरोध पर कल्याण मुनि यूनान ग थे और एथेंस नगर में ही 'सेंट कौलानस' के नाम से आज भी उनकी समाधि विद्यमान है । किन्तु इस मूर्तिशिल्प को इनसे भी प्राचीन माना गया है। यूनान में निर्ग्रन्थ परम्परा का व्यापक प्रभाव रहा है। इस संक्षिप्त अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जैनधर्म की श्रमण परम्परा में 'निर्ग्रन्थ' शब्द जैन साधुओं के लिये प्राचीनकाल से प्रयुक्त होता आया है। एक तरह से यह जैनधर्म का पारिभाषिक, अर्थ पूर्ण शब्द है, जो अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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