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________________ जैन आगमों में संगीत - विज्ञान २) अर्द्धसम-जिसमें प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण समान हों। ३) सर्व विषय - चारों चरण विषम हों । छन्द के ये ही तीन प्रकार होते हैं, चौथा प्रकार नहीं पाया जाता। गीत - गायिकाओं के प्रकार : श्यामा ( षोडशी) स्त्री मधुर स्वर में गाती है। कृष्णवर्णी स्त्री कठोर और रुक्ष स्वर में गाती है, गौरवर्णा स्त्री चातुर्य से गाती है । कानी स्त्री मंद स्वर में गाती है। अंधी स्त्री शीघ्रता से गाती है। कपिला स्त्री (पिंगला) विकृत स्वर में गीत गाती है। : ५५ गीत गाने वाली गायिकाओं की उक्त योग्यता उनके परोक्ष में भी, उनके गीत के आधार पर पहचानी जा सकती है। एक विशेष प्रसंग यों घटा - एक शहर में विवाह के गीत गाती हुई कुछ महिलाएँ सड़क से जा रही थीं। वहीं स्थानक में एक जैन साधु विराज रहे थे। उनके पास कुछ सद्गृहस्थ भी बैठे थे। धर्म-चर्चा चल रही थी। महाराजश्री के कानों में गीतों की आवाज् आई। उन्होंने पूछा- क्या आप लोगों में विधवा स्त्रियाँ भी मंगल गीत गाती हैं। एक भाई बोले - नहीं, हमारे यहाँ शादी के गीत सधवा स्त्रियाँ ही गाती हैं, ये सब सधवा हैं। महाराजश्री ने कहा- इनमें एक विधवा की आवाज़ आ रही है। लोगों ने उठ कर छज्जे में जाकर देखा और महाराजश्री को बुला कर कहा देखिए, महाराज! ये सब. सधवा स्त्रियाँ हैं। महाराजश्री ने एक महिला की ओर इशारा करते हुए कहा - वह महिला विधवा है और ५-१० मिनट बाद तो खबर आ गई कि उस स्त्री का पति अचानक दुर्घटना का शिकार होकर चल बसा। यह घटना सिद्ध करती है कि हम अपने आसपास के जगत् से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि एक के यूँ चले जाने पर दूसरे की आवाज़ भी बदल जाती है। शास्त्रकार ने यहाँ गीत गायिकाओं के प्रकार दिए हैं, गीत गायक के नहीं। जबकि ऐसी मान्यता है कि सभी तीर्थंकर मालकोश राग में गाकर उपदेश दिया करते तथा हमारे बहुत से शास्त्रों की रचना पद्यात्मक है अर्थात् गेय है, छन्दोबद्ध है, इन्हें पुरुषों ने भी गाया ही है । थे, तानसेन जैसे विश्व प्रसिद्ध गायक इस धरती पर हमेशा ही जन्म लेते रहे हैं। खेतों में हल चलाते समय गाने वाले किसान भी हमेशा से रहे हैं, तो होली आदि विशेष- विशेष पर्वों पर टोलियाँ बना-बना कर गाने-बजाने वाले पुरुष भी सदा रहे हैं। तो फिर गायक के प्रकारों का उल्लेख क्यों नहीं किया गया ? तथ्य अन्वेषणीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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