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________________ प्राकृत साहित्य का कथात्मक महत्त्व : ३९ इसमें जीव रक्षा एवं कृपणता के दुष्परिणाम बताये गये हैं जिससे कई योनियों तक भटकना पड़ता है।१३ यही कथा आख्यानकमणिकोश में आती है।१४ कृपणता के दुष्परिणाम एवं दान के महत्त्व के रूप में रयणचूडरायचरियं में नागश्री के पूर्व भव रूप में ईश्वरी सेठानी की कथा है जिसमें अत्यंत कृपणता एवं कटु वचन बोलने के कारण अनेक योनियों में भटककर अंत में साधु को भक्ति भाव से आहार दान के कारण नागश्री के रूप में जन्म लेती है।१५ प्राकृतकथासंग्रह में भी दान के महत्त्व के रूप में धनदेव-धनदत्त कथानक एवं जय राजर्षि की कथा और दान की कृपणता के लिये कृपण श्रेष्ठी के कथानक आये हैं।१६ आहार दान के बाद ज्ञान दान एवं अभय दान की महत्ता के रूप में क्रमश: धनदत्त एवं जयराजर्षि की कथा कथारत्नकोश में आती है।१७ दान के साथ तप का भी अपना महत्त्व है। तप दो प्रकार का होता है। बाह्य व आभ्यंता। किन्तु कथा भेद के रूप में न आकर केवल तप के महत्त्व के रूप में आती है। ये कथायें ज्ञाताधर्मकथा, रयणचूडरायचरियं, आख्यानकमणिकोश, कथारत्नकोश एवं प्राकृतकथासंग्रह में मिलती है। प्राकृतकथासंग्रह में मृगांक लेखा कथानक है।१८ भावना धर्म के रूप में आख्यानकमणिकोश में द्रमक, इलापत्र और भरत का आख्यान है।१९ भावना का सबसे अधिक महत्त्व है। जैसी आपकी भावना होती है वैसे ही कर्म परिणति होती है। जैसे “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु देखी तिन मूरत तैसी।" यही लेश्या है, यही मनोविज्ञान है। भावना से ही मन शुद्ध-अशुद्ध होता है। उसी के अनुसार कर्मफल भोगना पड़ता है। रयणचूड में सूरनंदा के पूर्व भव के रूप में एक कबूतर एवं उसके रक्षा की कथा आती है। बाग में रति-कीडा करते समय उसे यह कह कर उड़ा दिया जाता है कि वह कभी नहीं मिले जिसके परिणामस्वरूप उसे कई योनियों में भटकना पड़ता है।२० भावना का महत्त्व बताने के लिये प्राकृतकथासंग्रह में धर्मदत्त और बहबुद्धि का कथानक है।२१ कर्मफल एवं भावना के रूप में विपाकसूत्र में मृगापुत्र के पूर्वभव की कथा वर्णित है जिसमें वह भ्रष्ट, जुआरी एवं व्यभिचारी था।२२ रयणचूडकथा में भी चकवा-चकवी को रंगीन कर दिया गया ताकि वे कभी नहीं मिल सकें।२३ कषाय भी मानवीय गुण और जीवन मूल्यों को नष्ट करते हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह ये कथायें कुवलयमालाकहा में अत्यंत प्रभावशाली एवं रोचक ढंग से प्रस्तुत की गई हैं। इसमें कथाओं के विषय के आधार पर नाम रख कर बड़े प्रभावक ढंग से समझाया गया है। चण्डसोम, मानभट्ट, मायादित्य, लोकदेव और मोहदत्त के जन्मजन्मांतरों की कथायें हैं। ये पांचों नाम पांचों कथाओं के प्रतीक रूप में हैं।२४ लोभ के दृष्टांत उत्तराध्ययन में संकेत के रूप में मिलते हैं जैसे “जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो, पवड्डइ। दो मासं-कयं कज्जं, कोडीए वि न निट्ठिय।।२५ अर्थात् दो मासा सोना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525053
Book TitleSramana 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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