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इधर-उधर घूमते थे, तथा बैल एवं भैंसों को भिन्न-भिन्न दिशाओं में चरने के लिए छोड़ी थी और सार्थ के सभी जनों द्वारा समयोचित अपने-अपने कार्यों में व्यस्त होने पर अपने गुप्तचरों से भोजन-कार्य में आकुलित सार्थ को जानकर भीलों की एक टोली उस सार्थ पर आ पड़ी। गाहा :- अविय।
जव-मुग्ग-वन्न-अड्डण-ढक्किय-आजाणु-भीसण-सरीरा । मसि-रासी इद काला कुविय-कयंतोव्व दुप्पिच्छा ।।५।। खर-बीभच्छ-सरीरा पलास-पत्तेहिं विहिय-सेहरया। गुंजा-फल-रत्तच्छा
उभं-खर-केस-पब्भारा ।।६।। संनद्ध बद्ध-कवया पट्ठि-पएसा-ऽवणद्ध-तोणीरा । कन्नायढिय-धणुह-पट्ठ-दीसंत-भल्लोडा
॥७॥ केवि असि-वग्ग-हत्था केवि हु कर-गहिय-लउडया अवरे । गुंफण-फेरण-संकारएहिं जीयं व अवणेता ।।८।। घिट्ठा निदर-हियया दिसो दिसिं 'मारि मारि' भणमाणा ।
अन्नाया एव कुओवि + ज्झत्ति भिल्ला समावडिया ।।९।। छाया :नव-मुद्गग
वर्णाहनाच्छादिताजानु-भीषण-शरीरा । मसि-राशि-रिव कालाः कुपित-कृतान्त इव दुष्प्रेक्ष्याः ॥५॥ खर-बीभत्स-शरीराः पलाश-पत्र विहित-शेखरता । गुजा-फल-रक्ताक्षा
ऊर्ध्व-खर-केश-प्राग्भाराः ॥६॥ संनद्ध-षष्ठ-कवचाः
पृष्ठ-प्रदेशावनद्ध-तूणीराः । कर्णाकृष्ट-धनुः-पृष्ठ-दृश्यमान-शिरोऽग्रभागाः
॥७॥ केऽपि असि-वर्ग-हस्ताः केऽपि खलु कर-गृहीत लकुटका अपरे । गुम्फण-भ्रमण-सुंकारकः
जीवितमिवापनयन्तः ॥८॥ घृष्टा निष्ठुर-हृदया दिशोदिशं 'मारयत मारायत' भणन्तः । अज्ञाता एव कुतोऽपि झटिति भिल्लाः समापतिताः ॥९॥ अर्थ :- नवा मगना रंग जेवा चर्मथी ढंकायेला घुटण सुधीना भयंकर शरीरवाळा, मसिना समूह जेवा काळा गुस्से थयेला यमराज जेवा जोइ न शकाय तेवा, खरबचडा अने बिभत्स शरीरवाळा, पलाशना पांदडानी धारणकरेली माळा वाळा, गुंजाना फल जेवी लाल आँखवाळा, उभा रूक्ष वाळना समूहवाळा, सारी रीते तैयारथयेला बद्ध कवचवाळा, पीठ उपर खखेला भाथा वाळा, कानसुधी खेंचायेला धनुष्यना पाछळ देखाता बाणना अग्र भागवाळा, वळी केटलाक तलवारना समूह युक्त हाथवाळा, केटलाक हाथमां ग्रहण करेली लाकडीवाळा, केटलाक पत्थर फेंकवाना अस्त्र विशेष घूमावीने अव्यक्त अवाज द्वारा लोकोना प्राणनो नाश करतां, निर्लज्ज-निष्ठुर हृदयवाळा दशे दिशामां मारो-मारो बोलतां खबर न पड़े तेम क्यांकथी झपाटा बंध भिल्लो आवी पड्या.
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