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श्रीमद्धनेश्वरमुनीश्वरविरचितं सुरसुंदरीचरिअं
द्वितीय परिच्छेद गाहा:
अह अन्न-वासरम्मी कमेण बहु-वोलियाए अडवीए ।
गहिय जलासयमेगं अह सो आवासिओ सत्थो ।।१।। संस्कृत छाया :
अथान्य-वासरे क्रमेण बहुतिक्रान्तायामटव्याम् ।
गृहीत-जलाशयमेकं अथ स आवासितः सार्थः ॥१॥ गुजराती अर्थ :
हवे आ बाजु कोई तीजा दिवसे क्रमथी जतां घj-खरं जंगल ओळंगाएछते आवेला एक सरोवर पासे ते सार्थे आवास कर्यो (रोकायो)।। हिन्दी अनुवाद :- क्रम से आगे बढ़ते हुए जंगल व्यतीत होने पर एक सरोवर के पास उस सार्थ ने अपना पड़ाव डाला। गाहा:
अह तम्मि सत्थ-लोए उस्मद्दिय-सयल-वसह-नियरम्मि । जल-इंधणाइ-अट्ठा इओ तओ . परियडंतम्मि ।।२।। पमुक्केसुं दिसि दिसि चरणत्थं सव्व-वसह-महिसेसु ।। पारद्धेसु य तक्कालमुचिय-किच्चेसु लोएण ।।३।। नाऊण पणिहि-वसओ भोयण-कज्जम्मि आउलं सत्थं ।
सत्थम्मि तम्मि पडिया झडित्ति भिल्लाण धाडित्ति ॥४।। छाया:
अथ तस्मिन् सार्थ-लोके भाराकान्त-सकल-वृषभ-निकरे । जल-इंधनाहार्थ-मितस्ततः
पर्यटति ।।२।। प्रमुक्तेषु दिशि दिशि चरणार्थं सर्व-वृषभमहिषेषु । प्रारब्धेषु च तत्कालमुचित - कृत्येषु लोकेन ॥३॥ ज्ञात्वा प्रणिधि-वशतः भोजन-कार्ये आकुल-सार्थम् ।
साथे तस्मिन् पतिता झटिति भिल्लानां घाटीति ॥४॥ अर्थ :- इवे भारथी भरेला बधा बळदोना समूहवाळा ते सार्थना लोको पाणी तथा बळतण माटे अंहि तंहि भमते छते, चरवा माटे पोत पोताना बळदो अने भैंसोने जुदी-जुदी दिशाओमा मूके छते ते ते कालने उचित कार्यमां लोकोजोड़ाये छते, योताना गुप्तचरो पासेथी भोजन-कार्यमा आकुळ सार्थने जाणीने जल्दीथी भिल्लोनी घाड़ी ते सार्थमां आवी पड़ी. हिन्दी अनुवाद :- भार से आक्रान्त बैलों के समूलवाले उस सार्थ के लोग पानी एवं ईन्धन हेतु
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