SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाढ़ प्रदेश में महावीर : ३ इस प्रकार लाढ़ प्रदेश में समभावपूर्वक भयंकर उपसर्गों को सहनकर साधक महावीर ने अपने बहुत से कर्मों की निर्जरा कर डाली और तब आर्य प्रदेश की ओर पुन: अपने कदम बढ़ा दिये। अनेक स्थानों पर विहार करते हुए मगध राज्य की राजधानी राजगृह में आठवां वर्षावास पूर्ण होने पर महावीर के मन में कर्मों की विशेष निर्जरा हेतु पुनः उक्त लाढ़ देश जाने की इच्छा जागृत हुई और उन्होंने, मलयगिरि कृत आवश्यक वृत्ति (२८५) के अनुसार, पुन: उस अनार्यभूमि की ओर प्रयाण किया। पहले की ही भांति उस अनार्य प्रदेश में कष्टों से क्रीडा करते हुए उन्होंने कर्मों की घोर निर्जरा की। योग्य आवास न मिलने के कारण वृक्षों के नीचे या खण्डहरों में ठहरते और विचरण करते हुए उन्होंने वर्षावास पूर्ण किया। उक्त प्रदेश में इस प्रकार विचरण कर और अपने कर्मों की घोर निर्जरा कर महावीर ने पुन: आर्य प्रदेश में विहार किया। लाढ़ प्रदेश उनके लिये कर्मों की निर्जरा-भूमि सिद्ध हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy