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________________ २ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४ और शुभ्र भूमि उल्लिखित किये गये हैं। ये भाग उत्तर राढ़ और दक्षिण राढ़ के नाम से भी प्रसिद्ध रहे। महावीर ने इन दोनों ही क्षेत्रों में विहार किया। वहां विहार करते हुए साधक महावीर को जो उग्र उपसर्ग सहने पड़े उनका रोमांचक वर्णन आर्य सुधर्मा ने आचारांग 'प्रथम श्रुतस्कन्ध' के अध्याय ९, उद्देश्य ३ की गाथा २ से १३ के अन्तर्गत किया है। ___ उक्त वर्णन के अनुसार “महावीर को वहाँ ठहरने के लिये अनुकूल आवास प्राप्त नहीं हुए। गाँव बहुत थोड़े थे। वज्रभूमि के निवासी तो रुक्ष भोजन करने के कारण स्वभावत: क्रोधी होते थे। अत: महावीर को उक्त भूमि में विहार करते हुए अनेक उपसर्ग सहन करने पड़े। रूखा-सूखा बासी भोजन भी कठिनाई से मिलता था। वहाँ कुत्ते बहुत थे। वे महावीर को दूर से ही देखकर काटने के लिये झपटते थे। वहाँ पर ऐसे व्यक्ति बहुत कम थे जो उन्हें काटते और नोचते हुए कुत्तों को हटाते-भगाते, प्रत्युत स्वयं कुत्तों को छछकार कर उन्हें महावीर को काटने के लिये उत्प्रेरित करने वाले व्यक्तियों की संख्या काफी थी। किन्तु साधक महावीर उन प्राणियों पर किसी भी प्रकार का दुर्भाव नहीं लाते थे। उन्हें अपने तन के प्रति कोई ममत्व बुद्धि नहीं थी। इस उपसर्ग को आत्मविकास का हेतु समझकर इन ग्राम-संकटों को सहर्ष सहन करते हुए वह सदा प्रसन्न रहते।" ___"जैसे संग्राम में गजराज शत्रुओं के तीखे प्रहारों की तनिक भी परवाह किये बिना आगे ही बढ़ता जाता है, उसी प्रकार महावीर भी लाढ़ प्रदेश में उपसर्गों की किंचित् परवाह किये बिना आगे बढ़ते रहे। जब ठहरने के लिये दूर-दूर तक गाँव भी उपलब्ध नहीं होते, तब वह भयंकर अरण्य में ही रात्रिवास कर लेते थे। जब वह किसी गाँव में जाते तो गाँव के सन्निकट पहँचते ही ग्रामवासी बाहर निकलकर उन्हें मारनेपीटने लगते और अन्य गाँव जाने को कहते। वे अनार्य लोग उन पर दण्ड, मुष्ठि, भाला, पत्थर व ढेलों से प्रहार करते और फिर प्रसन्न होकर चिल्लाते।" । "वहाँ के क्रूर मनुष्यों ने महावीर भगवान् के सुन्दर शरीर को नोच डाला, उन पर विविध प्रकार के प्रहार किये। भयंकर परीषह उनके लिये उपस्थित किये। उन पर धूल फेंकी। वे उन्हें ऊपर उछाल-उछाल कर गेंद की तरह पटकते। उन्हें आसन पर से धकेल देते। तो भी भगवान् महावीर शरीर के ममत्व से रहित हो बिना किसी प्रकार की इच्छा व आकांक्षा के संयम-साधना में स्थिर रहकर कष्टों को शान्ति से सहन करते रहे।" "जैसे कवच पहने हुए शूरवीर का शरीर युद्ध में अक्षत रहता है, वैसे ही अचेल भगवान् महावीर ने अत्यन्त कठोर कष्टों को सहते हुए भी अपने संयम को अक्षत रखा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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