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________________ श्रमण आचार व्यवस्था - ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ७३ होता है । इस महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं- स्त्रीकथात्याग, मनोहरक्रियावलोकनत्याग, पूर्वरतिविलासस्मरणत्याग, प्रणीतरसभोजनत्याग और शयन आसनत्याग । ५- सर्वपरिग्रह विरमण (अपरिग्रह व्रत ) - इसके अनुरूप श्रमण को सभी प्रकार के अंतरंग एवं बाह्य परिग्रह से मुक्त रहना चाहिए । परिग्रहों से मन कलुषित होता है। अशान्ति, भय, तृष्णा बढ़ती है और मन एकाग्र नहीं हो पाता जिससे अन्य व्रतों के पालन में अड़चनें आती हैं। इस महाव्रत की भी पाँच भावनाएं हैं जो पंचेन्द्रियों से सम्बन्धित हैं - श्रोतेन्द्रिय में अनासक्ति, चक्षुरिन्द्रयों में अनासक्ति, घ्राणेन्द्रियों में अनासक्ति, रसेन्द्रियों में अनासक्ति और स्पर्शन्द्रियों में अनासक्ति । गुप्तियाँ एवं समितियां (अष्ट प्रवचनमाता) मानसिक एकाग्रता एवं विशुद्धि हेतु अशुभ प्रवृत्तियों का शमन एवं शुभ प्रवृत्तियों का आचरण आवश्यक है। मन की विशुद्धता एवं एकाग्रता श्रमण के महाव्रतों की रक्षा एवं पोषण करती हैं तथा आत्मिक उन्नति द्वारा मोक्ष की स्थिति तक पहुंचाने में सहायक होती हैं। इसके लिए गुप्तियों एवं समितियों का विधान है। गुप्तियां मन, वचन, काय की अशुभ प्रवृत्तियों को रोकती और समितियां चारित्र प्रवृत्ति की रक्षा करती हैं । २० वस्तुतः गुप्ति एवं समिति से एकाग्रता प्राप्त होती है तथा शुभ प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख होने का अभ्यास प्रबल बनता है। तीन गुप्तियों एवं पाँच समितियों का संयुक्त नाम अष्ट प्रवचनमाता है । २१ अ- गुप्तियां सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञानपूर्वक त्रियोग को अपने-अपने मार्ग में स्थापित करना गुप्ति है। गुप्तियां तीन हैं- मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति । १- मनोगुप्ति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवृत्त मन को रोकना मनोगुप्ति है इसके चार भेद हैं२२ सत्य, मृषा, सत्यामृषा एवं असत्यामृषा । २- वचनगुप्ति - असत्य भाषाणदि से निवृत्त होना या मौन धारण करना वचन गुप्ति है। इसके चार भेद हैं- सत्यवाग्गुप्ति, मृषावाग्गुप्ति, सत्यामृषावाग्गुप्ति और अस्त्यावाग्गुप्ति | - ३- कायगुप्ति - संरम्भ, समारम्भ और आरम्भपूर्वक कायिक प्रवृत्तियों का निरोध करना कायगुप्ति है। - ब- समितियां संयम में दृढ़ता एवं चारित्र - विकास के लिए महाव्रतों की रक्षा के लिए समितियों का विधान महत्वपूर्ण है। समितियां पाँच हैं ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदाननिपेक्ष समिति तथा परिष्ठापना या व्युत्सर्ग समिति Jain Education International - १ - ईर्यासमिति - मार्ग, उद्योग, उपयोग एवं आलम्बन की शुद्धियों का आश्रय लेकर गमन करने में ईर्या समिति का व्यवहार किया जाता है। २३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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