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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
२ - भाषासमिति - संयतमुनि क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, मुखरता, विकथा आदि आठ दोषों से रहित यथासमय परिमित एवं निर्दोष भाषा बोलें।२४
३- एषणासमिति - आहार आदि की गवेषणा, ग्रहणैषणा तथा परिभोगैषणा में आहार आदि के उद्गम, उत्पादन आदि दोषों का निवारण करना एषणासमिति है।२५
४- आदाननिक्षेपसमिति - सामान्य तथा विशेष दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से प्रतिलेखना तथा प्रमाणर्जन करके लेना और रखना आदान निक्षेप समिति है।२६
५- परिष्ठापना या व्युतसर्ग समिति - जीव-जन्तु रहित भूमि पर मलमूत्रादि का उत्सर्ग करना परिष्ठापना या व्युतसर्ग समिति है।२७
इनके अतिरिक्त षडावश्यक (सामायिक, चतुर्विशतिजिन स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोकत्सर्ग, प्रत्याख्यान), दसधर्म (क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य) बारह अनुप्रक्षाएं (अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशूची, आम्रव, संवर, निर्जरा, धर्म, लोक और बोधि दुर्लभ) तथा सल्लेखना भी जैन श्रमण आचार विधान के अति प्रमुख तत्व हैं।
इसी प्रकार बौद्ध श्रमण आचार व्यवस्था के भी कुछ प्रमुख तत्व हैं जिनमें हैं चार आर्य सत्य (दुःख, दुःख समुदाय दु:ख निरोध तथा दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा) चतुर्थ आर्य सत्य दुःखनिरोधगामिनी प्रतिपदा का अपर नाम आर्य अष्टांगिक मार्ग है। ये 'अष्टांगिक मार्ग' (सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति एवं सम्यक् समाधि) बौद्ध धर्म की आचार-मीमांसा के चरम साधन हैं। इस मार्ग पर चलने से साधक अपने दु:खों का नाश करके निर्वाण प्राप्त कर लेता है। इसलिए यह समस्त कर्मों में श्रेष्ठ माना गया है।२८ बौद्ध धर्म के अनुसार, शील, समाधि और प्रज्ञा ये तीन मुख्य साधन हैं। अष्टांगिक मार्ग इस त्रयी साधना का पल्लवित रूप है।
____ सदाचार बौद्ध धर्म की आधारशिला है। बौद्ध धर्म में सदाचार को शील कहा जाता है। शील का पालन प्रत्येक बौद्धों के लिए आवश्यक है। संक्षेप में शील का अर्थ है सब पापों से स्वयं को बचाना, पुण्य संचय तथा चित्त को परिशुद्ध रखना।२९ जब कोई, धर्म और संघ की शरण में जाता है तब उसे पंचशील के पालन की प्रतिज्ञा करनी पड़ती है। पंचशील सदाचार के पाँच सार्वभौम नियम हैं। वे निम्न हैं३० -
१- प्राणातिपात अर्थात् जीव-हिंसा से विरति, २- मृषावाद अर्थात् असत्य भाषण से विरति, ३- अदिन्नादान अर्थात् चोरी से विरति,
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