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________________ जैन दर्शन में निहित वैज्ञानिक तत्व : १७ १०. आयुर्वेद ११. ध्यान एवं योग १२. भूगर्भ विज्ञान १३. वास्तु विज्ञान प्रत्येक शाखा की सामग्री के अन्तर्गत जैनदर्शन से उक्त विषय के सम्बन्ध अथवा जैनाचार्यों की उक्त विषय में रुचि के कारण, प्राचीन जैन साहित्य में उक्त विषयक सामग्री के मूल स्रोतों को चिन्हित करना, जैनाचार्यों की एतद् विषयक प्रमुख उपलब्धियाँ अथवा जैन साहित्य में उक्त विषयक उपलब्ध प्रमुख सिद्धान्त उनके ऐतिहासिक महत्व एवं वर्तमान अकादमिक या सामाजिक समस्याओं के समाधान में उनकी भूमिका को रेखांकित करना होगा। यह स्वाभाविक ही है कि प्रत्येक शाखा के सम्बन्ध में अब तक प्रकाशित कार्य का विस्तृत सर्वेक्षण पहली आवश्यकता होगी जिससे उनका उपयोग हो सके। मैं यह सर्वेक्षण अलग से प्रस्तुत करूँगा। यह सर्वेक्षण पूर्ण है ऐसा मेरा दावा नहीं है वस्तुत: यह कभी पूर्ण हो ही नहीं सकता। निरन्तर प्रयास करते रहने से हम पूर्णता की ओर उन्मुख अवश्य हो सकते हैं। इस आलेख में इन सभी शाखाओं पर चर्चा संभव नहीं हैं। मैं स्वयं गणित का विद्यार्थी हूँ एवं गत २५ वर्षों से जैन गणित के क्षेत्र में ही अनुसंधानरत हूँ। अत: मैं अपने आलेख को जैन गणित तक ही सीमित कर रहा हूँ। सर्वप्रथम मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जैन गणित अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित या गणित की कोई उच्चतर शाखा नहीं अपितु गणितीय ज्ञान का वह अंश है जो प्राचीन जैन साहित्य में उपलब्ध है अथवा वह गणितीय ज्ञान है जिसका विकास महान जैनाचार्यों ने किया है। इसमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, भिन्न आदि के पारम्परिक विषय तो हैं ही, समुच्चय सिद्धान्त (Set Theory) संख्या सिद्धान्त (Number Theory) निकाय सिद्धान्त (System Theory) जैसे आधुनिक विषय भी हैं। जैनाचार्यों की गणित में रुचि का कारण भी अत्यन्त सहज है। आत्मसाधना के क्षेत्र में अग्रणी जैनाचार्यों का उद्देश्य गणितीय विकास नहीं अपितु दार्शनिक विषयों की व्याख्या में प्रामाणिकता, स्पष्टता, बोधगम्यता, सुसंगतता लाना था। गणित को साधन के रूप में प्रयोग में लाया गया है। यह साधन रहा है साध्य नहीं। फलत: यह जैन साहित्य के बहुभाग में रचा पचा है। सर्वप्रथम हम एक उद्धरण यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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