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________________ १२ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४ संसरण कर्म के उच्छेद के लिए उद्यत, श्रद्धायुक्त (प्रथम रत्न से युक्त) तथा ज्ञानवान् (द्वितीय रत्न से युक्त) पुरुष की पापगमन के कारण की क्रिया की निवृत्ति ही सम्यक् चारित्र है। कहा गया है - सर्वथावद्ययोगानां त्यागश्चारित्रमुच्यते। कीर्तितं तदहिंसादिव्रतभेदेन पञ्चधा।। - सर्वदर्शनसङ्ग्रह, आहेतदर्शनप्रकरण निन्दित कर्मों का सर्वथा त्याग चारित्र है। इसके पाँच भेद हैं - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह। प्रमाद से भी जब चरों अथवा स्थावरों के प्राणों का वियोग नहीं किया जाता, तब वह अहिंसा व्रत होता है - .. न यत् प्रमादयोगेन जीवितव्यपरोपणम्। चराणां स्थावराणां च तदहिंसा व्रतं मतम्।। - सर्वदर्शनसङ्ग्रह, आर्हतदर्शनप्रकरण। प्रिय, पथ्य तथा तथ्य वाणी सूनृत कही जाती है। जो वाणी प्रिय नहीं है, हितकर नहीं है, वह तथ्य होकर भी तथ्य नहीं है - . प्रियं पथ्यंवचस्तथ्यं सूनृतं व्रतमुच्यते। तत्तथ्यमपि नो तथ्यमप्रियं चाहितं च यत्।। - सर्वदर्शनसङ्ग्रह, आर्हतदर्शनप्रकरण। न दी हुई वस्तु को न लेना अस्तेय व्रत कहा जाता है। धन मनुष्य का बाह्य प्राण है। उसके हरण से प्राण का हरण हो जाता है - अनादानमदत्तस्यास्तेयव्रतमुदीरितम्। बाह्या: प्राणा नृणामर्थो हरता तं हता हि ते।। - सर्वदर्शनसङ्ग्रह, आईतदर्शनप्रकरण। दिव्य (आगामी जीवन में भोग्य) तथा औदयिक (इसी जीवन में भोग्य) कामनाओं का कृत, अनुमत तथा कारित - तीनों प्रकार से मन, कर्म तथा वचनसे त्याग ब्रह्मचर्य है। सभी भावों में इच्छा का त्याग अपरिग्रह कहा जाता है। । पाँचों भावनाओं द्वारा पाँच प्रकार से क्रमश: भावित ये पाँच महाव्रत मनुष्य को अक्षय पद प्रदान करते हैं - भावनाभि वितानि पञ्चभिः पञ्चधा क्रमात्। महाव्रतानि लोकस्य साधयन्त्यव्ययं पदम्।। - सर्वदर्शनसमह, आर्हतदर्शनप्रकरण। ये पाँच महाव्रत श्रमणों के लिए निर्धारित किये गये हैं। गृहस्थ के लिए पहले तीन तो वे ही हैं, किन्तु चतुर्थ तथा पञ्चम के स्थान पर क्रमश: संयम तथा सन्तोष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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