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________________ जैन-दर्शन में रत्नत्रय : १३ निर्धारित हैं। अहिंसा व्यापक शब्द है। इसमें तीनों प्रकार की हिंसाओं का परित्याग होना चाहिए - मन की हिंसा, वाणी की हिंसा तथा कर्म की हिंसा। अहिंसा का पालन मन, वचन तथा कर्म तीनों से होना चाहिए। श्रमणों के लिए जो साधना बतायी गयी है, वह कठोर और श्रेष्ठ है, इसीलिए उसे महाव्रत कहा गया है। गृहस्थ के नियमों को अणव्रत कहा जाता है। जैन धर्म में गृहस्थ तथा मुनिजनों की ये साधनाएँ एक दूसरे के समीप आ गयी हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि केवल सम्यक् दर्शन अथवा केवल सम्यक् ज्ञान अथवा केवल सम्यक् चारित्र से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। ये तीनों मिलकर मोक्ष प्रदान करते हैं - "सम्यक्त्वं दर्शने. ज्ञानमागमावबोध:, क्रिया च चरणकरणात्मिकास्तसां योग: सम्बन्धस्तस्माद्, न च केवलं दर्शनं ज्ञानं चारित्रं वा मोक्षकारणम्।।" - - षड्दर्शनसमुच्चय की मणिभद्रकृत वृत्ति, कारिका ५४।। सम्यक् दर्शन तथा सम्यक् ज्ञान के बिना चारित्र नहीं हो सकता। यदि कोई केवल चारित्र के मार्ग पर चलने का प्रयत्न करेगा तो गन्तव्य तक नहीं पहुँच सकेगा। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र - ये तीनों मिलकर ही मोक्ष के कारण होते हैं। तीनों दण्ड चक्रादिन्याय से मोक्ष के कारण हैं, तृणारणिमणिन्याय से नहीं। इनमें से कोई भी पृथक रूप से मोक्ष का कारण नहीं हो सकता। जिस प्रकार रसायन के साधन मिलकर रसायन का फल देते हैं, उसी प्रकार ये तीनों मिलकर साधन बनते हैं- “एतानि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मिलितानि मोक्षकारणं न प्रत्येकं यथा रसायनसाधनानि सम्भूय रसायनफलं साधयन्ति न प्रत्येकम्।'-सर्वदर्शनसङ्ग्रह, आर्हतदर्शनप्रकरण। भद्रबाहुस्वामी ने कहा है - • सुबहुं पि सुयमहीयं किं काही चरणविप्पमुक्कस्सा अन्धस्स जह पलित्ता दीवसयसहस्सकोडी वि।। "सुबह्वपि श्रुतमधीतं किं करिष्यति चरणविप्रयुक्तस्य। अन्धस्य यथा प्रदीप्ता दीपशतसहस्रकोटिरपि।।'' जिस प्रकार सहस्रों - करोड़ों दीपक भी अन्धे का हितसाधन नहीं कर सकते, उसी प्रकार बहुत श्रुत भी आचरण रहित पुरुष का उपकार नहीं कर सकता। नाणं चरित्तहीणं लिंगग्गहणं च दंसणविहीणं। संजमहीणं च तवं जो चरइ निरत्थयं तस्स।। (ज्ञानं चरित्रहीनं लिङ्गग्रहणं च दर्शनविहीनम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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