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________________ महावीर एवं बुद्ध का वर्षावास : ११३ वर्षाकाल प्रारम्भ- - स्थानांगसूत्र में वर्षावास तीन प्रकार का बताया गया हैं' : (i) जघन्य वर्षाकाल - सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के दिन से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक सत्तर दिन का होता है। (ii) मध्यम वर्षाकाल तक चार मास या एक सौ बीस दिन का होता है। श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा (iii) सामान्य वर्षाकाल आषाढ़ से लेकर मार्गशीर्ष तक छह मास का होता है। महावीर स्वामी ने आषाढ़ मास के अन्त में चातुर्मास लगने के बाद पचास दिन पर वर्षावास किया था। " सुरक्षित स्थान न मिलने की दशा में ही पाँच-पाँच दिन करके पचास दिन रुका जा सकता था।' बृहत्कल्पभाष्य में वर्षावास का परम प्रमाण चार माह बताया गया है। " - बौद्ध ग्रन्थ विनयपिटक से ज्ञात होता है कि राजगृह में निवास करते समय गौतम बुद्ध ने भिक्षुओं को बताया कि वर्षावास का दो समय रहेगा" : (i) आषाढ़ पूर्णिमा के दूसरे दिन से प्रारम्भ करना चाहिए इसे 'पूरिमिका वर्षावास' कहा गया है। (ii) आषाढ़ पूर्णिमा के मास भर पश्चात् प्रारम्भ करना चाहिए इसे 'पछिमिका वर्षावास' कहा गया है। वर्षावास का स्थान - जैन धर्म में वर्षावास वाले स्थान के सम्बन्ध में तेरह विशेष गुणों पर बल दिया गया है, यथा११ : १. जहाँ पर विशेष कीचड़ न हो, २. अधिक जीव उत्पति न हो, ३. शौचस्थल निर्दोष हो, ४. रहने का स्थान शांतिप्रद हो, ५. गोरस की अधिकता हो, ६. जनसमूह विशाल और भद्र हो, ७. सुविज्ञ वैद्य हों, औषधि ८. सुलभ हो, ६. स्वाध्याय योग्य स्थान हो, १०. गृहस्थ वर्ग धन-धान्यादि से समृद्ध हो, ११. राजा धार्मिक हो, १२. भिक्षा सुलभ हो, १३. श्रमण, ब्राह्मण का अपमान न होता हो । बौद्ध धर्म में भी भिक्षुओं को बताया गया कि उनके वर्षावास का स्थान निम्न दोषों से मुक्त होना चाहिए १२ : १. वृक्षकोटर, २. वृक्षवाटिका, ३. शवदाहगृह, ४. छप्पर चारी (अनाज रखने का मिट्टी का कुण्ड), ५. अस्थायी गृह । Jain Education International वर्षावास में भ्रमणसीमा जैन श्रमण-श्रमणियों के लिये वर्षावास में निवास स्थान के चारों ओर केवल सवायोजन अर्थात पाँचकोस गमनागमन की सीमा निर्धारित थी। १३ बौद्ध भिक्षु भिक्षुणियों को भी वर्षावास में निवास स्थान पर भ्रमण की अनुमति नहीं थी, केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही यह सम्भव था । १४ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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