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________________ महावीर एवं बुद्ध का वर्षावास डॉ० मनीषा सिन्हा* प्राचीन जैन एवं बौद्ध साहित्य से विदित होता है कि महावीर एवं गौतम बुद्ध के समय वर्षावास श्रमण परम्परा का एक महत्वपूर्ण अंग था। महावीर ने गणधर, श्रमण, श्रमणी, आचार्य, उपाध्याय सभी को वर्षावास का आदेश दिया। निर्ग्रन्थ श्रमणों के लिए वर्षावास का मूल उद्देश्य अहिंसा महाव्रत का पालन था। वर्षाकाल में पृथ्वी असंख्य कीट-पतंगों से परिपूर्ण हो जाती थी और गमनागमन में होने वाले पदाघात के कारण कितने जीवों की हत्या हो जाती थी। इसलिए इनको हानि से बचने के लिए इस काल में मार्ग का कम से कम उपयोग आवश्यक था। विनयपिटक से भी सूचित होता है कि बुद्ध जब राजगृह में चारिकारत थे तब उन्होंने हिंसा से बचाव, भिक्षुओं की सुरक्षा एवं चारिका या भ्रमण की असुविधा के कारण इस नियम को लागू किया कि वर्षाकाल में भिक्षु-भिक्षुणी, शिक्षमाणा, श्रामणेर सभी किसी सुरक्षित स्थान पर निवास करेंगे। वर्षावास में महावीर एवं बुद्ध ने अपने उपदेशों द्वारा अनुयायियों की संख्या में भारी वृद्धि की। प्राय: बुद्ध को विहारों का दान इसी समय मिला। महावीर और बुद्ध का समय ब्राह्मण धर्म से इनके संघर्ष का काल था। इसलिए जैन एवं बौद्ध श्रमण वर्षावास करते समय अपने धर्मोपदेशों से उनके बाह्य आडम्बर एवं कुरीतियों पर प्रहार करते थे। महावीर स्वामी ने ५५७-५८ ई०पू० में बयालीस वर्ष की अवस्था में कैवल्य प्राप्त किया और ५२७ ई०पू० में बहत्तर वर्ष तक अपने धर्म का प्रचार किया। इस अवधि में उन्होंने बयालीस वर्षाकाल व्यतीत किया जिसे चातुर्मास भी कहा जाता है। महावीर के ४२ वर्षावासों की सूची १. अस्थिक २. नालन्दा ४. पृष्ठ चम्पा ५. भद्दियनगर ६. भद्दियनगर ७. आलम्भिया ८. राजगृह ९. वज्रभूमि १०. श्रावस्ती ११. वैशाली १२. चम्पा १३. राजगृह १४. वैशाली १५. वाणिज्यग्राम १६. राजगृह १७. वाणिज्यग्राम १८. राजगृह *अशोक विहार कालोनी (प्रथम चरण), पहड़िया, वाराणसी ३. चम्पा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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