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________________ आचार्य शङ्कर की बौद्ध दृष्टि : ५९ सन्दर्भ : १. द्रष्टव्य - (i) चन्द्रधर शर्मा, बौद्ध और वेदान्त। (ii) राधाकृष्णन्, भारतीय दर्शन। (iii) राममूर्ति पाठक, भारतीय दर्शन की समीक्षात्मक रूपरेखा। २. ब्रह्मसूत्र में कुल मिलाकर ५५५ सूत्र हैं। विषय की दृष्टि से यह सूत्र-ग्रन्थ चार अध्यायों और सोलह पादों में विभक्त है। विषयानुसार इनके पृथक्-पृथक् नाम दिए गए हैं। अध्यायों और पादों का पुन: विभाजन अधिकरणों में किया गया है। ब्रह्मसूत्र पर अनेक भाष्य भी लिखे गए हैं तथा इन भाष्यों की अधिकतम संख्या २२ निर्धारित की गई है। ब्रह्मसूत्र पर रचित पाँच प्रधान भाष्यों के आधार पर वेदान्त के पाँच प्रधान सम्प्रदायों की स्थापना हुई है। ३. जैन, बौद्ध, सांख्य, वैशेषिक, पाशुपत और पाञ्चरात्र। ४. 'गौड़पाद-प्रणीत माण्डूक्यकारिका में बौद्ध दर्शन सहित सांख्य आदि सम्प्रदायों एवं उनके सिद्धान्तों का उल्लेख है किन्तु दर्शन के पूर्वोत्तर पक्षों व युक्तियों, सुव्यवस्थित शैली आदि का लगभग अभाव है। ५. वेदान्तीय अद्वैतवाद के प्रणेता आचार्य गौड़पाद को शुकदेव का शिष्य अथवा शङ्कराचार्य के प्रगुरु होने का सम्मान प्राप्त है। इनके काल की पूर्व सीमा द्वितीय शती से पूर्व व अपर सीमा आठवीं शती निर्धारित है। इन्होंने जीवन में उत्तरगीताभाष्य, सांख्यकारिका-टीका आदि कई ग्रन्थों की रचना की है। किन्तु गौड़पाद को अद्वैत वेदान्त के निकट लाने का श्रेय उनकी प्रधान कृति माण्डूक्यकारिका को जाता है, जो माण्डूक्यउपनिषद् पर आधारित है। आगम, वैतथ्य, अद्वैत व अलातशान्ति नामक चार प्रकरणों में विभक्त इस ग्रन्थ में क्रमश: २९, ३८, ४८ और १०० कारिकाएँ हैं। अलातशान्ति नामक इसका चतुर्थ प्रकरण बौद्ध दर्शन की समीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ६. क्रमते न हि बुद्धस्य ज्ञानं धर्मेषु तापिनः। सर्वे धर्मास्तथा ज्ञानं नैतबुद्धेन भाषितम्।। माण्डूक्यकारिका ४/९९. ७. ज्ञानेजाऽऽकाशकल्पेन धर्मान्यो गगनोपमान्। ज्ञेयाभिन्नेन संबुद्धस्तं वन्दे द्विपदां वरम्।। वही, ४/१ कुछ विद्वान् इस संदर्भ को बुद्ध से सम्बद्ध नहीं मानते हैं। ८. अपि च बाह्यार्थ-विज्ञान-शून्यवादत्रयमितरेतरविरुद्धमुपदिशता सुगतेन.......। ब्रह्मसूत्र शाङ्करभाष्य, २/२/३२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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