SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनों और सिखों के ऐतिहासिक संबंध : १०१ बंगाल में ढाका पहुँचने पर गुरु जी को सूचना मिली कि पटना में गोविंद राय जी का जन्म हुआ है। किंतु वे तुरन्त पटना वापस न पहुँच कर पंजाब आ गए थे। जब तक वे पुन: पटना वापस आए और पहली बार अपने होनहार व प्रिय सुपुत्र को देखा, तब तक गोविंद राय जी चार साल के हो चुके थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने बचपन के करीब सात वर्ष पटना में सालस राय की इसी हवेली में गुज़ारे । यह सालस राय जौहरी, एक धनाढ्य ओसवाल जैन था। गंगा नदी के रास्ते से नौकाओं द्वारा व्यापार का मुख्य केन्द्र होने से जैन जौहरियों के कई परिवार पटना में हीरे-मोतियों का व्यापार करते थे। जन्म स्थान गुरुद्वारा के पास ही जौहरियों की एक पूरी गली थी। सालस राय जौहरी के वंशज इस समय पटना के ही एक उपनगर (कालोनी) में रह रहे हैं। जिस हवेली के प्राँगण में दशम गुरु श्री गोविन्द सिंह का जन्म हुआ था, उस का आधा भाग सालस राय ने गुरु जी को ही भेंट कर दिया। गुरुद्वारा जन्म स्थान इसी जगह पर है। हवेली के बाकी आधे भाग में जैन श्वेताम्बर मन्दिर है। दोनों की एक ही साझी दीवार है तथा एक ही बड़े व ऊँचे मुख्य गेट के आधे-आधे भाग के रास्ते से होकर गुरुद्वारा व जैन मंदिर को जाया जाता है। पंजाब के भामाशाह - दीवान टोडरमल जैन सामाना (जिला पटियाला) के जैन ओसवाल गादीया दो सगे भाइयों की गौरव गाथाएँ स्मृति पटल से धीरे-धीरे ओझल होती जा रही हैं। इन में एक का नाम था दीवान टोडरमल और दूसरे का सखीदास । अपनी बुद्धि, कौशल और ज़मीनी मामलों का सुज्ञ जानकार होने से टोडरमल को सरहिंद के नवाब ने अपने दरबार में बुला लिया और "दीवान" (आज के मिनिस्टर आफ स्टेट से मिलती जुलती) पदवी भी इन्हें दी। १५ जून, १९८२ ई० के दैनिक अखबारों में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार " सामाना में टोडरमल की सराय थी और दीवान टोडरमल द्वारा बनवाए जाने के पत्थर (शिलालेख ) भी कुछ कुओं में लगे हुए थे।" इसी रिपोर्ट में उल्लेख है कि - " मशहूर दानवीर सखीदास, जिसकी सखावत (दानवीरता) के किस्से इलाके भर में प्रसिद्ध हैं, सामाना के ही थे। वे ओसवाल जैन थे। यहां के नवाब घरानों में सखीदास की बहुत इज्ज़त थी। अनेक गरीब लड़कियों की शादी इनकी मदद से हुई । स्थानीय विवाहों आदि में महिलाओं द्वारा सखीदास का रास गाया जाना यहां प्रचलित था " । १३ पौष, १७६२ विक्रमी (२७ दिसंबर, १७०४) के दिन सरहिंद के नवाब वज़ीर खान के आदेश से दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह जी के छोटे और सुकोमल दोनों साहिबज़ादे (सुपुत्र) अत्यंत क्रूरता और पशुतापूर्ण तरीके से मौत की नींद सुला दिये गए। साहिबज़ादों की दादी माता गुजरी जी को यह समाचार दीवान टोडरमल ने खुद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy