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________________ जैनयोग : एक दार्शनिक अनुशीलन अनिल कुमार सोनकर * "भारतीय संस्कृति में जो कुछ भी शाश्वत है, जो कुछ भी उदात्त एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, वह सब तपस्या से ही सम्भूत है, तपस्या से ही इस राष्ट्र का ओज़ समुत्पन्न हुआ है...... तपस्या भारतीय दर्शनशास्त्र का ही नहीं, प्रत्युत उसके समस्त इतिहास का प्रस्तावना है..... प्रत्येक चिन्तनशील प्राणी चाहे वह आध्यात्मिक हों चाहे आधिभौतिक, सभी तपस्या की भावना से अनुप्राणित हैं..... उसके वेद, वेदांग, दर्शन, पुराण, धर्मशास्त्र आदि सभी विद्या के क्षेत्र जीवन की साधनारूप तपस्या के एकनिष्ठ उपासक हैं। " १ जनसामान्य के कल्याण हेतु आचार-व्यवहार के सुव्यवस्थित नियमों का प्रतिपादन करने वाला जैन दर्शन व्यापक आदर्शों वाला वह वैज्ञानिक जीवन-पद्धति है जो मनुष्य के आचार- शुद्धि और साधना द्वारा चरम उन्नति का समर्थ आश्वासन प्रतिपादित करते हुए मनुष्य को जैनत्त्व से सम्पन्न करने की क्षमता रखता है साथ ही अन्याय परम्पराओं के विपरीत मुक्तिदाता के रूप में किसी सर्वोच्च सत्ता सम्पन्न ईश्वर अथवा तीर्थंकर के अनस्तित्व का निर्देश करते हुए उस आस्था का विधायक है कि मनुष्य अपने प्रयासों एवं कर्मों से जगत् में सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त कर सकता है। मानव के ऐहिक मूल्यों की प्राप्ति का साक्षात् हेतु तथा पारलौकिक मूल्यों की प्राप्ति का पारम्परिक हेतु जैन दर्शन मात्र वैयक्तिक मुक्ति का उपख्यान नहीं करता, अपितु उसे समष्टिगत कल्याण के रूप में देखता है। उसकी यही दृष्टि मनुष्य में आत्मगौरव, आत्मविश्वास और आत्मशक्ति को उदित करने में सफल रहती है। उमास्वाति प्रणीत तत्त्वार्थसूत्र में सात तत्त्वों का निरूपण हुआ है- जीव, अंजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - जो कि जैन दर्शन की तत्त्व योजना भी है। प्रथम दो जीव और अजीव तत्त्वों का निरूपण जैन-तत्त्वमीमांसा के अन्तर्गत एवं आस्रव और बंध का विवेचन कर्म सिद्धान्त के अन्तर्गत हुआ है, यही उसका मनोविज्ञान भी है। संवर और निर्जरा चारित्र विषयक हैं और यही जैन धर्मगत आचारशास्त्र कहलाता है। सातवाँ तत्त्व मोक्ष जैन दर्शन के अनुसार जीवन की सर्वोत्कृष्ट अवस्था है जिसे प्राप्त करना समस्त धार्मिक क्रियाओं एवं आचरण का अन्तिम ध्येय * (शोध छात्र) दर्शन एवं धर्म विभाग, कला संकाय, का० हि०वि०वि०, वाराणसी
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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