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साहित्य सत्कार
जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन : साध्वी नगीना ; प्रकाशक जैन विश्वभारती प्रकाशन, लाडनूं, प्रथम संस्करण - २००२ ई०, पृष्ठ २१०, आकारडिमाई, मूल्य ८५/- रुपये।
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आत्मा,
साध्वी नगीना कृत 'जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन' अब तक जैन दर्शन पर लिखी गयी पुस्तकों से सर्वथा अलग एक नवीनता लिए हुए है। साध्वी जी ने इस पुस्तक में जैन दर्शन के चिरपरिचित सामान्य विषयों का समावेश न करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण और समकालीन दार्शनिक महत्त्व के विषयों यथा कर्मवाद, पुनर्जन्म, मोक्ष की बोधगम्य व्याख्या के साथ-साथ विकासवाद एवं पाश्चात्य दर्शन के साथ उनके समन्वय को भी रेखांकित किया है। लेखिका की यह विशेषता है कि उन्होंने जिन दार्शनिक विषयों की व्याख्या की है, उन्हें षड्दर्शन के आलोक में समालोचित भी किया है जिसमें दुराग्रह अथवा 'सयं सयं पसं सता गरहंता परम वयम्' का लेशमात्र भी समावेश नहीं है। जैन दर्शन के साथ पाश्चात्य दर्शन के प्रमुख विषयों की समन्वयात्मक व्याख्या साध्वी श्री का एक अभिनव प्रयोग है जो सर्वथा प्रशंसनीय है। कर्मवाद को वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हुए लेखिका ने उसे क्लोनिंग तथा क्वांटम यांत्रिकी जैसे सद्य: नवीन विषयों के परिप्रेक्ष्य में भी व्याख्यायित करने का सफल प्रयास किया है। यथास्थान वर्ण्य विषयों के समर्थन में चित्रों का विनियोग पुस्तक को पूर्णता प्रदान करता है। भाषा प्राञ्जल और सुबोधगम्य है। यह पुस्तक निश्चय ही जैन दर्शन के अध्येताओं के लिए सर्वथा उपयोगी और साधना मार्ग के पथिकों के लिए उपादेय सिद्ध होगी ।
डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय
तीर्थंकर पार्श्वनाथ ( ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में) : संपा० डॉ० अशोक कुमार जैन, डॉ० जयकुमार जैन एवं डॉ० सुरेशचन्द्र जैन, प्रका० प्राच्य श्रमण भारती, १२ / ४, प्रेमपुरी, निकट जैन मंदिर, मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश; प्रथम संस्करण - वर्ष १९९९ ई०, आकार - डिमाई, पक्की जिल्द बाइंडिंग, पृष्ठ २६+६+३५३; मूल्य १२५/- मात्र ।
प्रस्तुत ग्रन्थ तीर्थंकर पार्श्वनाथ ( ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में) नामक विषय पर वर्ष १९९७ में आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी में पढ़े गये शोधनिबन्धों के संकलन का मुद्रित रूप है। उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी म०सा० के