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वाली मूर्तियों की संख्या की दृष्टि से यह संख्या सर्वाधिक है। एलोरा में २४ तीर्थंकरों का सामूहिक अंकन भी हुआ है। एलोरा की जिन मूर्तियों में त्रिछत्र, सिंहासन, प्रभामण्डल चामरधारी सेवकों जैसे प्रातिहार्यों एवं लांछनों तथा शासन देवताओं के रूप में यक्ष-यक्षियों का सिंहासन छोरों पर अंकन हुआ है।
एलोरा की प्रमुख जैन गुफाएं (गुफा ३० छोटा कैलास, गुफा ३२ इन्द्रसभा, गुफा ३४) राष्ट्रकूटों के काल में विशेषत: अमोघवर्ष एवं कृष्ण 'द्वितीय' के काल में बनीं जबकि अन्य जैन गुफाओं और उनके मूर्तियों के निर्माण में देवगिरि के यादवों का भी योगदान था। इस प्रकार एलोरा की जैन मूर्तियां मुख्यत: ९वीं-दसवीं शती ई० में निर्मित हैं। ब्राह्मण मूर्तियों के समान ही कलात्मक दृष्टि से जैन गुफाओं की मूर्तियां भी महाकाय किन्तु आनुपातिक अंगरचना वाली और जीवंत हैं। कायोत्सर्ग एवं ध्यानस्थ, जिन मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य उदाहरणों में आकृतियां पूरी तरह गतिशील दिखाई गई हैं।
जैन महापुराण की रचना राष्ट्रकूटशासक अमोघवर्ष 'प्रथम' (लगभग ८१९ से ८८१ ई०) एवं कृष्ण 'द्वितीय' (लगभग ८८०-९१४ ई०) के शासनकाल एवं क्षेत्र में हुई। अत: स्वाभाविक रूप से महापुराण की कलापरक सामग्री का समकालीन राष्ट्रकूट कलाकेन्द्र एलोरा की जैन गुफाओं की मूर्तियों पर प्रभाव देखा जा सकता है। ज्ञातव्य है कि महापुराण एवं एलोरा की जैन गुफाएं समकालीन (९वी - १०वीं शती ई०) और दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध हैं। महापुराण, आदिपुराण और उत्तरपुराण इन खण्डों में विभक्त है। आदिपुराण की रचना जिनसेन ने लगभग नवीं शती ई० के मध्य और उत्तरपुराण की रचना उनके शिष्य गुणभद्र ने नवीं शती ई० के अंत या दसवीं शती ई० के प्रारम्भ में की थी। कला परक अध्ययन की दृष्टि से
आदिपुराण एवं उत्तरपुराण अर्थात महापुराण (दिगम्बर परम्परा) की सामग्री का विशेष महत्त्व है क्योंकि इनमें ऋषभदेव सहित २४ तीर्थंकरों एवं अन्य शलोकापुरुषों तथा समकालीन यानी राष्ट्रकूटकालीन समाज और कला का विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। इस दृष्टि से डॉ० कुमुद गिरि द्वारा किया गया शोध कार्य जैन महापुराण का कला परक अध्ययन विशेष महत्त्वपूर्ण है।
एलोरा में पार्श्वनाथ के बाद महावीर की ही सर्वाधिक मूर्तियां हैं, जिनके कुल १२ उदाहरण मिले हैं। एलोरा की जैन गुफाओं की महावीर मूर्तियों में से ६ गुफा संख्या ३०; ४ गुफा संख्या ३२ और २ मूर्तियां गुफा संख्या ३३ में हैं।
प्रस्तुत लेख में एलोरा की महावीर मूर्तियों का अध्ययन हमारा अभीष्ट है। एलोरा की मूर्तियों पर प्रारम्भिक चालुक्य कला केन्द्र बादामी एवं ऐहोल की मूर्तियों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। अधिकांश उदाहरण जैन गुफाओं के मुख्य मण्डप में प्रतिष्ठित