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________________ पूर्वमध्यकाल में स्त्रियों की दशा (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के संदर्भ में) डॉ० उमेश चन्द्र श्रीवास्तव* हेमचन्द्र विरचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में स्त्रियों की दशा का वर्णन तत्कालीन समाज के अनुकूल किया गया है। इस ग्रन्थ में वर्णित नारी कर्तव्य पालन तथा त्याग की भावना से युक्त दिखायी देती है। उसके जीवन को ग्रन्थकार ने पुत्री, पत्नी तथा माता के रूप में चित्रित किया है। कन्या - भारतीय समाज पितृसत्तात्मक होने के कारण पुत्र प्राप्ति की विशेष अपेक्षा रखता है। हेमचन्द्र ने भी इसी दृष्टिकोण को अपने ग्रन्थ में प्रस्तुत किया है लेकिन पुत्री की उपेक्षा भी नहीं की है। ग्रन्थ में पुत्री की कामना स्पष्ट रूप से दिखायी देती है। कन्या के जन्मोत्सव पर अत्यन्त प्रसन्नता दिखायी गयी है। वह परिवार के स्नेह की सम्पत्ति मानी गयी है। अनेक पुत्रों के बाद पुत्री का जन्म अधिक प्रसन्नता का विषय है। यद्यपि हेमचन्द्र ने पुत्र तथा पुत्री को समान दृष्टि से देखा है तथापि उनके ग्रन्थ से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि कन्या बढ़े हुए ऋण, वैर तथा बीमारी आदि के समान है। ऐसी दशा में हेमचन्द्र ने एक स्थल पर नवजात पुत्री को त्याग देने का उदाहरण दिया है। इसमें सन्देह नहीं कि समाज में स्त्री कन्या के रूप में प्रतिष्ठित थी। हेमचन्द्र ने कैकेयी, प्रीतिमती, कनकवती आदि कन्याओं को अत्यन्त विदुषी रूप में चित्रित किया है जिससे ज्ञात होता है कि स्त्रियों को उच्च शिक्षा भी दी जाती थी कन्यायें राजनीतिक विषयों से सम्बन्धित ज्ञान भी प्राप्त करती थीं। कैकेयी दशरथ के साथ युद्धस्थल में गयी थी। राजा नहुष की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी सिंहिका ने सेना का नेतृत्व किया था। स्त्रियों में घुड़सवारी का शौक भी दिखायी देता है। तत्कालीन नारी द्वारा स्वयंवर में उक्त कलाओं की प्रतियोगिता प्रदर्शित की जाती थी। इन कलाओं में हराने वाले पुरुष ही उसका वरण करता था। प्रीतिमती१०, गन्धर्वसेना, श्राविका तथा सुण्येष्ठा आदि नारियां ऐसी थीं जिन्होंने स्वयंवर में भाग लेकर अपने पति का वरण किया था। सुलसा तथा सुभद्रा ने वेद-वेदांगों की प्रतियोगिता में याज्ञवल्क्य के साथ भाग लिया था। इस प्रकार ज्ञात होता है कि उस समय कन्याओं को हर प्रकार की कलाओं में पारंगत किया जाता था। * प्राध्यापक, प्राचीन इतिहास, महिला महाविद्यालय, बस्ती, उत्तर प्रदेश
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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