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प्रदूषित पर्यावरण का यह खतरा असंयमित जीवन की देन है। संयम-शून्य जीवन शैली के कारण प्रदूषण का खतरा बढ़ा है। हम संयम के मूल्य को समझें। असंयम अपने आपमें एक बीमारी है जिससे आज सभी पीड़ित हैं। इससे कोई अछूता नहीं है। इसका इलाज संयमरूपी दवा से ही संभव है। संयम से प्रतिरोधक शक्ति का निर्माण होगा और पर्यावरण अपने आप स्वच्छ हो जाएगा। यदि संयम रूपी दवा का सेवन नहीं किया गया तो प्रदूषण का खतरा बढ़ता ही जाएगा। पर्यावरण के संकट का समाधान संयम और अहिंसा से संभव है। संयम और
अहिंसा पारलौकिक ही नहीं है। यह जीवन के साथ जुड़ी हुई है। हमारी इच्छाएं, कामनाएं और लालसाएं जितनी असीमत हैं, पदार्थ उतने ही सीमित हैं। उस पर केवल मनुष्य का ही नहीं, सम्पूर्ण जीव-जगत् का अधिकार है। पर्यावरण संतुलन के लिए मानव जाति का दायित्व है कि वह अपनी जीवन-शैली को संयम की ओर अग्रसर करे। भोगवादी संस्कृति के मलिन पक्षों पर अंकुश लगाए। विलासी जीवन के लिए प्रकृति से छेड़खानी (खिलवाड़) करना बन्द करे, तभी पर्यावरण संतुलन एवं जीव मात्र का अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है।
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