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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : ५५ "अर्थात् सब प्राणी जीने की इच्छा करते हैं कोई मरना नहीं चाहता" इसलिए निर्ग्रन्थ प्राणिवध का घोर परिहार करते हैं। इसके साथ ही “परस्परोपग्रहोजीवानां" की मैत्री भावना से सोचें कि जैसा हमारा जीवन अन्य जीवों पर आश्रित हैं वैसे ही अन्य जीव हमारे पर आश्रित हैं। सूई जहा ससुत्ता, न नस्सइ, कयवरम्मि पडिआ वि। जीवो वि तह ससुत्तो, न नस्सइ गओ वि संसारे। • धागा सूई का स्वभाव है। उसके बिना वह जोड़ने का काम नहीं कर सकती है। बिना धागे के यदि सूई लावारिस पड़ी हो तो वह लोगों के पैरों में चुभ सकती है। उससे घातक घाव हो सकता है। आज की सूई सारी वैज्ञानिक प्रगति है। तरहतरह की मशीनें हैं। दोनों ही लोहा हैं। यदि यन्त्रों व वैज्ञानिक उपकरणों के साथ मनुष्य का मर्यादित व संयमित मस्तिष्क न हो तो वे प्राणि जगत् का विनाश कर डालेगें, प्रकृति को उजाड़ देंगे, पर्यावरण को दूषित कर देंगे और यदि मानव संयम का धागा अपनी विकास रूपी सूई के साथ पिरो दे तो ये विनाश की लीला बच • सकती है और तभी यह सही अर्थों में कहा जा सकता है - "क्षेत्र सर्वप्रजानां प्रभवत्" सारी प्रजा का कल्याण हो। संसार के सभी प्राणी सुखी हों - "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।" प्राचीन आचार्यों ने कहा है - "धर्मो रक्षति रक्षितः" जब हम धर्म की रक्षा करते हैं तब धर्म हमारी रक्षा करता है। इस प्रकार हमें उदार वृत्ति युक्त भी बनना चाहिए। जितना हम प्रकृतिक से लेते हैं, उतना हमें प्रतिदानं स्वरूप लौटाना भी चाहिए। हमें अपनी जीवन शैली ऐसी बनानी चाहिए, जिससे हम स्वयं भी सुख से जीयें और दूसरों को भी जीने दें। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण में अहिंसा सहायक ही नहीं वरदान स्वरूप सिद्ध होगी। जैसा कि ऊपर कहा गया कि पर्यावरण और जैन धर्म का चोली दामन का सम्बन्ध है। इसलिए प्रकृति के संरक्षण हेतु हम श्रावक के बारह व्रतों को भी धारण करें और इनके गूढ़ रहस्यों को समझें तो किसी हद तक हम संरक्षण में हाथ बटा सकेंगे और महान् हिंसा से भी बच सकेंगे। इससे एक ओर जैन धर्म का प्रसार तो होगा ही, दूसरी ओर हम मूक प्राणियों को जीवन दान भी दे सकेंगे। ___ उपसंहार . पर्यावरण प्रदूषण की वर्तमान भयावह स्थिति को देखकर पर्यावरणविद् अत्यन्त चिंतित हए। अत: ५ जून १९७२ को स्काटहोम में संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्त्वावधान में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें भारत सहित १५१ देशों के प्रतिनिधि सम्मिलित हए व प्रदूषण की रोकथाम के उपायों पर अपने विचार प्रकट किए, साथ में ५ जून को प्रतिवर्ष पर्यावरण दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषण भी की गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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