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________________ ५२ चला आया और आज पर्यावरण प्रदूषण की भयानक स्थिति हमारे सामने उपस्थित हई है अत: किसी ने कहा भी है कि करता है पग पग पर गलतियां मानव। इसलिए आया है सामने प्रदूषण का दानव।। मनुष्य कई प्रकार से पर्यावरण को प्रदूषित करता है जिसमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया जा रहा है। १) पर्वतों के सीने भेद कर और वनों को रौंद कर सड़कें बनाई गई हैं। इन पर चलने वाले वाहनों से निकला धुआँ वायुमण्डल की वायु के साथ घुल मिल उसे प्रदूषित करता है। इस धुएँ में कार्बन डाई ऑक्साईड व कार्बन मोनो आक्साईड गैसों की बहुलता होती है जो जहरीली होती हैं। भारत एक विकासशील देश है। यहाँ हजारों की संख्या में कल-कारखाने व फैक्ट्रियां हैं जहां प्रतिदिन लाखों टन अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकलता है और यह नदियों में बहाया जाता है। इन पदार्थों में कुछ कण ऐसे होते हैं जो पानी पर एक ठोस परत बना देते हैं, जिससे सूर्य का प्रकाश पानी में प्रवेश नहीं कर पाता और ऑक्सीजन पानी में नहीं घुल पाती और पानी पीने योग्य नहीं रहता है। इस दूषित जल में रहने वाले जीव, मछलियां आदि ऑक्सीजन की कमी के कारण मर जाती हैं। मनुष्य निरन्तर वन काट रहा है और पशुओं का वध भी जारी है जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता चला जा रहा है। पेड़ हमें भोजन, वस्त्र, प्राणदायक वायु व अन्य कई वस्तुएँ प्रदान करते हैं। इनकी निरन्तर कटाई से आज सभी वस्तुओं की कमी हो रही है। पेड़ वर्षा लाने में भी सहायक होते हैं। उनकी निरन्तर कटाई से सभी जगह वर्षा का असमान वितरण हो रहा है। जिससे कहीं अतिवृष्टि हो रही है तो कहीं अनावृष्टि। आज विज्ञान की प्रगति के कारण नई-नई वस्तुओं का निर्माण हो रहा है। " इन वस्तुओं के उपयोग हेतु जनता को ललायित करने के लिए उत्पादकों द्वारा कई प्रयास किये जा रहे हैं जिनमें वस्तुओं के विज्ञापन व विशेष कार्यों के प्रचार हेतु लाउडस्पीकरों का उपयोग किया जाता है जिससे बहुत शोरगुल होता है। इसके अतिरिक्त आज की पीढ़ी के लोग अत्यन्त तेज स्वरों वाले संगीत को सुनना पसन्द करते हैं जैसे - पॉप म्युजिक इत्यादि। अत्यधिक शोर मानव के श्रवण तन्त्र को प्रभावित कर उनकी सुनने की शक्ति को कम कर देते हैं। इसी प्रकार प्रतिदिन कल कारखानों और मशीनों के शोर का सामना करने वाले श्रमिक कुछ ही वर्षों में बहरे हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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