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________________ जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण कु०निधि जैन* पर्यावरण वातावरण का पर्याय है। पर्यावरण संरक्षण एवं संतुलन पर हमारा समूचा अस्तित्व निभर करता है। इसलिए हमारे प्राचीन महर्षियों और आचार्यों ने पर्यावरण को दूषित होने से बचाया। पर्यावरण के मुख्यतः दो प्रकार हैं- आध्यात्मिक पर्यावरण और भौतिक पर्यावरण। आध्यत्मिक पर्यावरण जीव को आत्म संतुष्टि प्रदान करता है तो भौतिक पर्यावरण दैहिक संतुष्टि । हमारी क्रियाओं का प्रभाव भौतिक पर्यावरण पर तथा सोच विचार का प्रभाव आध्यात्मिक पर्यावरण पर पड़ता है। मानव अपने भोजन तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पौधों और जन्तुओं पर आश्रित है । अतः स्पष्ट है कि मनुष्य एवं पर्यावरण एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार भौतिक एवं आध्यात्मिक पर्यावरण दोनों का शुद्ध रहना आवश्यक है क्योंकि जीव सृष्टि तथा वातावरण का घनिष्ट सम्बन्ध है । पर्यावरण प्रदूषण मानव जीवन के लिये विनाशक है और पर्यावरण संरक्षण मानवीय सृष्टि का विकासक, विज्ञान ने इसे निर्विवाद रूप से सिद्ध कर दिया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक पद्धति में पर्यावरण संरक्षण के जो उपाय हैं उन सभी का तात्विक विश्लेषण किया जाये तो हम पायेंगे कि जैन धर्म के सभी मान्य सिद्धान्तों और उनमें साम्यता है । “ धारयते इति धर्मः” के अनुसार पर्यावरण संरक्षण भी हमारा मानवीय धर्म है, जो सभी धार्मिक मान्यताओं में श्रेष्ठ कोटि में आता है। आज सम्पूर्ण मानव जाति के समक्ष एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या जो सुरसा का रूप धारण कर चुकी है जिसका आकार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है उससे मुक्ति कैसे मिलेगी ? यद्यपि मनुष्य स्वतः ही इस समस्या का जनक है क्योंकि उसने ही पर्यावरण चक्र में हस्तक्षेप किया जिससे पर्यावरण प्रदूषण व इससे सम्बन्धित समस्याएं उत्पन्न हुईं। एक प्रकार से यह हस्तक्षेप उस मूर्ख के समान हुआ जो पेड़ की उसी डाली को काट रहा था जिस पर वह बैठा था। मानव की इस मूर्खता के कारण ही प्राकृतिक साधन नष्ट हो रहे हैं तथा * तृतीय पुरस्कार प्राप्त आलेख (ग्रुप- ए ) द्वारा श्री यशपाल जैन, कपड़े के थोक व्यापारी, शिवपुरी ( म०प्र० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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