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________________ १८ अपेक्षित है। लोभ और अकर्मण्यता के कारण मनुष्य चौर्य कर्म में प्रवृत्त होता है। लोभ ही परिग्रह का कारण है। मन, वचन और कर्म से किसी की सम्पत्ति को बिना आज्ञा के लेना या देना स्तेय है। अचौर्यवृत्ति को न अपनाने के कारण ही वर्तमान युग में पदार्थों में मिलावट करना, अनुचित रीति से धन ग्रहण करना, चोरी की वस्तु खरीदना, चोरी की प्रेरणा और उसका समर्थन करना, वनों का अवैध दोहन, अभ्यारण्यों में वन्य पशुओं की मृगया, रिश्वत लेना और देना आदि अतिचारों ने समाज को आक्रान्त कर दिया है। वर्तमान युग में वधुओं के दहेज निमित्तक दाह और हत्या जैसे क्रूरतम पाप कर्मों में प्रवृत्ति के लिए उत्प्रेरणा चौर्य और हिंसा की वृत्ति से ही मिलती है। जैन धर्म द्वारा विशेष रूप से उपदिष्ट अस्तेयवृत्ति को अपनाने से वर्तमान युग का समाज सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक प्रदूषण से मुक्त हो सकता है। आत्मा के निज गुणों को छोड़कर क्रोध, लोभ आदि प्रभावों को ग्रहण करना अन्तरंग परिग्रह तथा ममत्व भाव से धन-धान्य आदि भौतिक वस्तुओं का संग्रह करना बाह्य परिग्रह है। जैन धर्म-दर्शन के प्रसिद्ध ग्रन्थ तत्वार्थसूत्र में परिग्रह की सूक्ष्म परिभाषा दी गयी है- 'मूर्छा परिग्रहः'' अर्थात् भौतिक वस्तुओं के प्रति तृष्णा और ममत्व का भाव रखना मूर्छा है। वर्तमान भोगवादी धनलिप्साग्रस्त युग में मानव की परिग्रहवृत्ति चरम सीमा पर पहुँच गयी है। वह पूजा-पाठ और आध्यात्मिक ज्ञान का केवल आडम्बर करता है। वह बाहर तो स्वयं को ज्ञानी के रूप में प्रदर्शित करता है परन्तु उसका अन्त:करण अज्ञान और मिथ्याज्ञान के अन्धकार से आवृत्त रहता है। आधुनिक युग का मानव जीवन की क्षणभंगुरता को भूल कर केवल अपने परिवार में भविष्य में आने वाली सात पीढ़ियों की सुख-समृद्धि के लिए धनसंग्रह करना चाहता है। इस अमर्यादित और असीमित धन संग्रह की प्रवृत्ति के कारण हमारे देश में गरीब अधिक गरीब और धनी अधिक धनी होते जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप सामाजिक और आर्थिक पर्यावरण पूर्णतया प्रदूषित हो चुका है। ऐसी अति शोचनीय स्थिति में जैनधर्मसम्मत अपरिग्रहवृत्ति को धारण किये बिना मानव समाज का समभाव से अभ्युदय नहीं हो सकता। इस प्रकार अपरिग्रहवृत्ति पर्यावरणपरिशुद्धि के लिए परम उपयोगी होने के कारण सर्वथा स्वीकार्य है। . ब्रह्मचर्य से पर्यावरणशुद्धि-: वर्तमान युग में पर्यावरण प्रदूषण में मानव समाज का अब्रह्मचर्य भी एक हेतु है। अब्रह्मचर्य की पराकाष्ठा के कारण हमारा देश विश्व में जनसंख्या वृद्धि में अग्रणी स्थान प्राप्त कर रहा है। अधिक जनसंख्या के कारण अधिक संसाधनों की आवश्यकता होने से हमारे देश में प्राकृतिक स्रोतों का अमर्यादित दोहन किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण की जटिल समस्या उत्पन्न हो गई है। ब्रह्मचर्यवृत्ति को धारण करने से अतिजनसंख्या के कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525049
Book TitleSramana 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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