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जैन धर्म और पर्यावरण संरक्षण : ७ उसी पर आधारित है। प्राणवायु का स्रोत भी वही है। नि:संदेह वनों के काटने से हमारा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है वृक्षों के कम हो जाने से उपजाऊ मिट्टी बह जाती है, बाढ़ आदि का प्रकोप बढ़ जाता है। थोड़े से लोभ के कारण वनों की कटाई बढ़ती जा रही है। भारत में सन् १९४७ में वनों से होने वाली आय ८७ लाख थी जो अब बढ़कर ६० करोड़ हो गई है। पर्यावरणविदों के अनुसार एक वृक्ष अपनी पूरी उम्र में मनुष्य को लगभग १५ लाख रुपयों का लाभ देता है, जिसे हम कुछ हजार रुपयों के लोभ में कटवा देते हैं। वन, कृषि, मनुष्य और वन्य जीव एक दूसरे के * पूरक हैं, पर आज यह सन्तुलन बिगड़ गया है।
वायुमण्डल हमारे पर्यावरण का अभिन्न अंग है। एक दिन में व्यक्ति लगभग २०,००० बार सांस लेता है और इस दौरान ३५ पौंड वायु का प्रयोग करता है। यदि वायु शुद्ध नहीं रही, तो वह निश्चित ही हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। वाहनों और उद्योगों से निकलने वाली विषैली गैसों ने इस वायु को अत्यन्त प्रदूषित कर दिया है। संसार में सर्वप्रथम वायु प्रदूषण से सम्बन्धित दुर्घटना सन् १९४८ में लास एंजेल्स में हुई और उसके बाद क्रमश: १९५२ ई० में लन्दन और १९८४ में भोपाल में। भोपाल में हुए गैस काण्ड के कुपरिणामों से हम परिचित हैं ही।
__ वायु प्रदूषण के प्रश्न पर भी जैन आचार्यों का दृष्टिकोण स्पष्ट था। यद्यपि प्राचीन काल में वे अनेक साधन जो आज वायुप्रदूषण के कारण बने हैं, नहीं थे। अधिक मात्रा में धूम्र उत्पन्न करने वाले व्यवसाय अल्प ही थे। धूम्र की अधिक मात्रा न केवल फलदार पेड़-पौधों अपितु अन्य प्राणियों और मनुष्यों के लिए किस प्रकार हानिकारक है, यह बात वैज्ञानिक गवेषणाओं और अनुभवों से सिद्ध हो चुकी है। (उपासकदशाङ्गसूत्र में जैन गृहस्थों के लिए स्पष्टत: उन व्यवसायों का निषेध है जिनमें अधिक मात्रा में धूम्र उत्पन्न होकर वातावरण प्रदूषित होता हो) वायु प्रदूषण का एक कारण फलों आदि को सड़ाकर उनसे मादक पदार्थ बनाने का व्यवसाय भी है जो जैन गृहस्थों के लिए निषिद्ध है( वायु प्रदूषण को रोकने और प्रदूषित वायु, सूक्ष्म कीटाणुओं एवं रजकण के बचने के लिए जैनों में मुख वस्त्रिका बांधने या रखने की जो परम्परा है, वह इस तथ्य का प्रमाण है कि जैन आचार्य इस सम्बन्ध में कितने सजग थे कि प्रदूषित वायु और कीटाणु हमारे शरीर में मुख एवं नासिका के माध्यम से प्रवेश न करें और हमारा दूषित श्वांस वायु प्रदूषित न करे।)
वाय मण्डल के प्रदूषण से ओजोन की परत पर आघात आने का खतरा बढ़ चुका है। उस पर विषैले गैसों से गम्भीर चोट पहुँच रही है। हम जानते हैं पृथ्वी पर आक्सीजन का स्रोत ओजोन ही है। पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश से पराबैगनी किरणों को रोकने का कार्य भी यह परत करती है। यदि ये किरणें पृथ्वी पर सीधे पहुँच जायें
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