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________________ ४ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३ होगी कि कहीं किसी पार्श्वनुयायी जैनमुनि से वे प्रभावित न हो जायें। पूर्वोल्लेखों के अनुसार महात्मा बुद्ध पूर्व में स्वयं जैनधर्म में दीक्षित थे, अत: त्यक्त धर्म के प्रति उनके मन में यह आशङ्का निराधार नहीं कही जा सकती है। . तीर्थङ्कर महावीर और महात्मा बुद्ध- ये दोनों समकालीन थे। इनके शिष्यों में परस्पर विवाद भी होता रहता था। अङ्गत्तरनिकाय की अट्ठकथा के अनुसार गौतम बुद्ध के चाचा ‘वप्प' निर्ग्रन्थ श्रावक थे१५ और न्यग्रोधाराम में उनके साथ बुद्ध का संवाद भी हुआ था।१६ इस प्रकार हम देखते हैं कि काशी नगरी और उसके पार्श्ववर्ती क्षेत्र सिंहपुर (वर्तमान सारनाथ) का जैनधर्म से निकट का सम्बन्ध रहा है। भगवान् श्रेयांसनाथ की जन्मभूमि सिंहपुर है, इसमें किसी को कोई सन्देह नहीं होना चाहिए, क्योंकि जैन वाङ्मय में जितने भी प्राचीन एवं अर्वाचीन सन्दर्भ मिले हैं वे सभी सिंहपुर को ही भगवान् श्रेयांसनाथ की जन्मभूमि स्वीकार करते हैं। आचार्य यतिवृषभ (ई.सन् १७६ के आस-पास) ने अपनी तिलोयपण्णत्ती,१७ आचार्य शीलाङ्क (ईसा की नवमी शती) ने अपने चउप्पन्नमहापुरिसचरियं,१८ आचार्य जिनसेन 'प्रथम' (ई.सन् की आठवीं शती का उत्तरार्द्ध) ने अपने हरिवंशपुराण,१९ आचार्य जिनसेन 'द्वितीय' (ईसा की नवमी शती) ने अपने आदिपुराण,२० आचार्य गुणभद्र (ई० सन् ८९८ अर्थात् ईसा की नवमी शती का अन्तिम चरण) ने अपने उत्तरपुराण२१ और कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि (ईसा की बारहवीं शती) ने अपने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित महाकाव्य में सिंहपुर, सिंहपुरी अथवा सिंघपुरी का उल्लेख किया है तथा उसे भगवान् श्रेयांसनाथ की जन्मभूमि माना है। पं० बलभद्र जैन की मान्यता है कि सारनाथ स्थित धम्मेक स्तूप भगवान् श्रेयांसनाथ की स्मृति में सम्राट अशोक के पौत्र सम्राट् सम्प्रति ने बनवाया था।२३ सम्राट अशोक बौद्धधर्मानुयायी था, किन्तु उनका पौत्र सम्राट सम्प्रति जैनधर्मानुयायी था।२४ अशोक का पुत्र कुणाल अपनी सौतेली माता के षड्यन्त्र के कारण अन्धा हो गया था, अत: स्वयं राजा होने में असमर्थ कुणाल ने अपने बेटे सम्प्रति के लिए अपने पिता सम्राट अशोक से राज्य की याचना की थी। प्रपौत्रश्चन्द्रगुप्तस्य बिन्दुसारस्य नप्तृकः। एषोऽशोकश्रियः सूनुरन्धो याचति काकणीम्।। २५ सम्प्रति कुणाल का पुत्र था, यह बात बौद्ध-ग्रन्थ दिव्यावदान में भी कही गयी है।२६ डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री की तो यह भी मान्यता है कि वर्तमान में जो शिलालेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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