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________________ जैन पुराणों में वर्णित जैन संस्कारों का जैनेतर संस्कारों से तुलनात्मक अध्ययन : १७ ८. १२. ७. नामकर्म संस्कार शिशु के जन्म के बारह दिन बाद शुभ लग्न में किये जाने का विधान है। आचार्य जिनसेन के अनुसार नामकर्म संस्कार अन्नप्राशन के बाद भी हो सकता था। बहिर्यान संस्कार शुभलग्न में मंगल वाद्यों को बजाते हुए शिशु को प्रथम बार प्रसूतिगृह से बाहर लाकर किया जाता है।४३ यह वैदिक निष्क्रमण संस्कार के समान है। निषधा संस्कार में शिशु को मंगलकारक आसन पर बैठाया जाता है तथा मंगल कलश की स्थापना, मन्त्रोच्चारण व देवपूजन कर बालक के निरन्तर दिव्य आसनों पर आसीन होने की योग्यता की कामना की जाती है।४।। १०. अन्नप्राशन संस्कार में सविधि अर्हन्तदेव की पूजा कर मन्त्रोच्चारण के साथ प्रथम बार अन्न खिलाया जाता है।४५ ११. व्युष्टि संस्कार प्रथम वार्षिक जन्म दिवस के रूप में पूर्ववत् जिनेन्द्रदेव का पूजन, दान, प्रीतिभोज द्वारा सम्पन्न होता है। इसे वर्षवर्द्धन संस्कार भी कहा गया है।४६ चौलकर्म संस्कार में शिशु मुण्डन के बाद सुस्नान गन्धानुलिप्त तथा समलंकृत होकर बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करता है।।७। १३. लिपिसंख्यान संस्कार पांचवें वर्ष में बालक को अक्षर का बोध करवा कर सम्पन्न किया जाता है। अर्थशास्त्र, रघुवंश, उत्तररामचरित, कादम्बरी, मार्कण्डेयपुराण, संस्कारप्रकाश, संस्काररत्नमाला आदि में भी इसका उल्लेख है।८ १४. उपनीति संस्कार को उपनयन संस्कार भी कहा जाता है। गुरु के समीप शिष्य को लाना उपनीति कहलाता है। जिनसेनाचार्य के अनुसार यह आठवें वर्ष में होता है। बालक जिनालय में अर्हन्तदेव की पूजा कर मौजीबन्धन करता है। इसके बाद शिखाधारी बालक को सफेद उत्तरीय, वस्त्र, यज्ञोपवीत धारण करवा कर गुरु द्वारा विधिवत अभिमन्त्रित करके अणुव्रत, गुणव्रत तथा शिक्षाव्रतों के उपदेश के द्वारा यह संस्कार सम्पन्न होता है। बालक को विद्या अध्ययन काल में ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करना विहित है।४९ तीन धागे का यज्ञोपवीत सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र का सूचक है। सात धागे का यज्ञोपवीत सात परम स्थानों का बोधक है। जिनेन्द्रदेव की ग्यारह प्रतिमाओं के व्रत के प्रतीक के रूप में ग्यारह धागे के यज्ञोपवीत का उल्लेख मिलता है। सदाचारी व्यक्ति को ही यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिए। पापाचरण करने वालों का यज्ञोपवीत पाप का प्रतीक है।५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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