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________________ १३१ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३ (क) आलेख खण्ड, (ख) अनेकान्त संस्थान। आलेख खण्ड में जैन दार्शनिक ग्रन्थों एवं जैन नीति मीमांसा की चर्चा की गयी है। इस खण्ड में सौम्य, युवा ब्रह्मचारी श्री संदीप जी 'सरल' द्वारा- 'जैन नैयायिक और जैन न्यायग्रन्थ- संक्षिप्त परिचय' काफी महत्त्वपूर्ण है। इसमें 'सरल' जी ने पूरे जैन न्याय ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय बहुत ही सरल भाषा में दिया है। इन्होंने अन्य अनुपलब्ध जैन तार्किक ग्रन्थ की भी चर्चा की है जो कि दर्शन जगत् के लिए वरदान कहा जा सकता है। __ अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध “मनमोहन पंचशती' अज्ञात कवि छत्रशेष की रचना को डॉ० गंगाराम गर्ग ने कवि के ५०० कवित्त, सवैया और छप्पय छंदों में लिखित रचना को दर्शन, धर्म, भक्ति और श्रावकोचित आचार की सूक्तियाँ बोधगम्य, रोचक और सरल भाषा में व्यक्त किया है। इसी प्रकार और भी विद्वत्जनों जैसे-प्रो० रतनचन्द्र जैन द्वारा- पूजापाठ-संग्रहोक्त और शास्त्रोक्त पूजाविधियों में अन्तर, पं० लालचन्द 'राकेश' द्वारा- हरिवंशपुराण में वर्णित राजनीति, डॉ० नीलम जैन द्वारा- 'आधुनिक तकनीक से करना होगा श्रुत संरक्षण' सभी आलेख पठनीय हैं। अनेकान्त संस्थान खण्ड में अनेकान्त ज्ञानमन्दिर शोध संस्थान, बीना का परिचय और संस्थान द्वारा किये गये कार्यों का लेखा-जोखा व उनके द्वारा प्रकाशित ग्रन्थों की सूची है। मिला प्रकाश : खिला बसन्त, लेखक- राष्ट्रसंत आचार्य विजय जयंतसेन सूरि, आकार-डिमाई, पृष्ठ १०+३५५, प्रकाशक- श्री राजराजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट, शेखनो पाडो, रिलीफ रोड, अहमदाबाद (गुजरात), प्रथम संस्करण वि०सं० २०५६, मूल्य ५० रुपये। __ मिला प्रकाश : खिला बसन्त', गणधरवाद पर विशिष्ट ग्रन्थ है। जिस प्रकार जैनियों में तीर्थङ्करों की एक परम्परा है, उसी प्रकार गणधरों की भी एक परम्परा है। तीर्थङ्करों के प्रधान शिष्य को गणधर कहा जाता है। गणधर का शाब्दिक अर्थ हैजो गण का रक्षण करता है अथवा गण को नियन्त्रित करता है, प्रेरित करता है, जो अनुपम ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि को धारण करता है, वही गणधर कहलाता है। ___गणधर का मुख्य कार्य अपने समय के तीर्थङ्करों की वाणी की व्याख्या करना, विचारों का संकलन करके व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करना। वर्तमान आचार्य परम्परा भगवान् महावीर स्वामी के गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी के नाम से चल रही है। भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान और प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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