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________________ साहित्य सत्कार : १२८ जीवन क्या है? लेखक- डॉ० अनिल कुमार जैन, आकार- डिमाई, प्रकाशक- विद्या प्रकाशन मन्दिर, दरियागंज, नई दिल्ली ११०००२, प्रथम संस्करण २००२ ई०, पृष्ठ १०३; मूल्य- ३०/ जीवन को तो सभी लोग जीते हैं, किन्तु जीवन के बारे में चर्चा गिने चुने लोग ही करते हैं। वास्तव में जीवन क्या है? यह बहुत ही जटिल प्रश्न है। अधिकांश दार्शनिक विद्वानों ने जीवन के बारे में चर्चा की है, लेकिन डॉ० अनिल कुमार जैन ने जीवन की वैज्ञानिक व्याख्या, जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में की है। जैन दर्शन के छ: द्रव्यों, सात तत्त्वों एवं नौ पदार्थों की विस्तृत चर्चा में 'जीव' ही मुख्य होता है। संसार में जितने भी प्रकार के जीव पाये जाते हैं, उनका कल्याण कैसे हो उनका विकास कैसे हों, इत्यादि को ध्यान में रखकर जीव की व्याख्या करने के साथ ही जीवों की उत्पत्ति, उनका वर्गीकरण आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा करके उनके रहस्यों को समझाया गया है। लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि विज्ञान के लिए बने हुए रहस्यों (जैसे- बुढ़ापा, मृत्यु इत्यादि क्यों आती है) को जैन दर्शन में कर्मसिद्धान्त द्वारा उसकी वैज्ञानिक व्याख्या द्वारा बतलाया गया है। लेखक ने यह सिद्ध करने का काफी अच्छा प्रयास किया है कि क्लोनिंग, जैनेटिकल इंजीनियरिंग आदि जिनके द्वारा जैन दर्शन के सिद्धान्तों को गलत कर दिया गया है, का खण्डन करके यह दिखलाया है कि जैनदर्शन द्वारा की गयी व्याख्या उचित है। इसलिए जीव विज्ञान व भौतिक विज्ञान के शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक जिज्ञासा व प्रेरणाप्रद है। इस पुस्तक में कुछ अध्याय काफी महत्त्वपूर्ण हैं जैसे- विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में सम्मूछन-जन्म, क्लोनिंग व जैनेटिक के साथ कर्म सिद्धान्त, कर्म तथा उनका आत्मा के साथ सम्बन्ध। निष्कर्ष के तौर पर लेखक ने पुस्तक के अध्ययन में तीन विचारों को स्पष्ट किया है(क) वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन में किये गये निष्कर्षों, जैन दर्शन में पहले से ही वर्णन किया गया है। (ख) वे विषय जिनकी विज्ञान ने तो खोज की, लेकिन जैन दर्शन में उनका विशेष . उल्लेख नहीं मिलता है। (ग) विज्ञान के क्षेत्र में बने हुये रहस्य का जैन दर्शन में खुलासा किया गया है। उपरोक्त तीनों विचारों को केन्द्र बनाकर लेखक ने इस पुस्तक की रचना की जो सराहनीय है। वीरप्रभु का अन्तिम सन्देश, प्रवचनकार मुनि यशोविजय जी; सम्पा०डॉ० प्रीतम संघवी, आकार-डिमाई, पृष्ठ ६+५८, प्रकाशक-दिव्य दर्शन ट्रस्ट, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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