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जैन - साहित्य और संस्कृति में वाराणसी मण्डल :
१९. (क) तथैवाश्वपुरी ज्ञेया परा सिंहपुरीति च । महापुरी तथैवान्या विजया च पुरी पुनः || - हरिवंशपुराण, ५ / २६१.
(ख) अत्रास्ति भरतक्षेत्रे विषयः शकट श्रुतिः । पुरं सिंहपुरं तत्र सिंहसेनो नृपोऽभवत् ॥ —वही,
२७/२०.
(ग) द्वीपेऽत्रैव सुपद्मायां शीतोदायास्त्वपाक्तटे । अभूत् सिंहपुरे भूभृदर्हद्दासो महार्हितः ॥ - वही, ३५ / ३.
२०. इहैवापरतो मेरोर्विदेहे गन्धिलाभिधे । पुरे सिंहपुराभिख्ये पुरन्दरपुरोपमे ।। - आदिपुराण, ५/२०३.
२१. अनुभूयं सुखं तस्मिन् तस्मिन्नत्रागमिष्यति । पेऽस्मिन् भारतेसिंहपुराधीशो नरेश्वरः ।
- उत्तरपुराण, ५७/१७.
२२. ततश्च जम्बूद्वीपेऽस्मिन् भरतक्षेत्रभूषणम् ।
रत्ननूपुरवद् भूमेरस्ति सिंहपुरं पुरम् ।।
- त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्यम्, 'श्रीश्रेयांसजिनादिचरितम्', ४.१.१५.
२३. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, प्रथम भाग पृष्ठ १४४.
२४. नेमिचन्द्र शास्त्री, भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मय का अवदान, द्वितीय खण्ड, पृष्ठ १३४.
२५. वही, पृष्ठ १३२.
२६. राधाकुमुद मुखर्जी, अशोक, पृष्ठ ८.
२७. अधिकांश शिलालेख सम्प्रति ने जैन तीर्थङ्करों के निर्वाण स्थलों, अपने सगे-सम्बन्धियों से सम्बन्धित स्थलों अथवा जैनमुनियों के समाधि स्थलों पर खुदवाये हैं। कालसी, जूनागढ़, धौली और रूपनाथ के शिलालेखों का सम्बन्ध क्रमशः आदिनाथ, नेमिनाथ, वासुपूज्य और (महावीर को छोड़कर) शेष बीस तीर्थङ्करों के निर्वाण स्थलों से है। शाहबाजगढ़ी, मानसेरा, भाब्रू-बैराट,
सासाराम
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