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________________ खरतरगच्छ-रुद्रपल्लीयशाखा का इतिहास : ६९ रचनाकार ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा का उल्लेख न करते हुए केवल अपने गुरु तथा गच्छ आदि का ही वर्णन किया है - अभयदेवसूरि पृथ्वीचन्द्रसूरि (वि.सं. १४२६/ई. सन् १३७० के आस-पास मातृकाप्रथमाक्षर दोहा के रचनाकार) ७. प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति – यह संघतिलकसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि की कृति है, जो वि.सं. १४२९ में रची गयी है। देवेन्द्रसूरि ने भी प्रशस्ति में मात्र अपने गच्छ और गुरु का ही नाम दिया है : संघतिलकसूरि देवेन्द्रसूरि (वि.सं. १४२९ में प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति के रचनाकार) दानोपदेशमालाटीका (वि.सं. १४१८) भी इन्हीं की कृति है। (पीटर्सन, भाग ४, क्रमांक ५८१); जिनरलकोश, पृ. १७४. ८. आचारदिनकर - यह रुद्रपल्लीयशाखा के अभयदेवसूरि (तृतीय) के शिष्य वर्धमानसूरि की कृति है, जो वि.सं. १४६८/ई.सन् १४१२ में रची गयी है। इस ग्रन्थ में जिनप्रतिमा-सम्बन्धी शास्त्रीय लक्षणों का निरूपण किया गया है। इसकी श्लोकों की लम्बी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा, ग्रन्थ के रचनाकाल आदि का विस्तार से उल्लेख किया है। प्रशस्तिगत गुर्वावली निम्नानुसार है : वर्धमानसूरि (प्रथम) जिनेश्वरसूरि अभयदेवसूरि (प्रथम) जिनवल्लभसूरि जिनशेखरसूरि पद्मचन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि अभयदेवसूरि (द्वितीय) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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