SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ इनके द्वारा रचित वीरकल्प, कुमारपालचरित, शीलतरंगिणीवृत्ति, लघुस्तवटीका, कन्यानयनमहावीरप्रतिमाकल्प (कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प के अन्तर्गत) आदि कृतियां मिलती हैं जिनके बारे में यथास्थान उल्लेख किया गया है। ४. सम्यकत्वसप्ततिकाटीका'- प्राकृत-भाषा में रची गयी यह कृति रुद्रपल्लीयशाखा के आचार्य गुणशेखरसूरि के शिष्य संघतिलकसरि की कृति है। इसकी प्रशस्ति में टीकाकार ने अपनी गुरु-परम्परा तथा प्रस्तुत कृति के रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : वर्धमानसूरि → जिनेश्वरसूरि → अभयदेवसूरि (प्रथम) → जिनवल्लभसूरि → जिनशेखरसूरि → पद्मचन्द्रसूरि → विजयचन्द्रसूरि → अभयदेवसूरि (द्वितीय) → देवभद्रसूरि → प्रभानन्दसूरि → श्रीचन्द्रसूरि → गुणशेखरसूरि → संघतिलकसूरि (वि.सं. १४२२/ई.सन् १३६६ में सम्यकत्वसप्ततिकाटीका के रचनाकार) ५. भक्तामरस्तोत्रवृत्ति - यह वृत्ति आचार्य गुणचन्द्र के शिष्य गुणाकरसूरि द्वारा रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो निम्नानुसार है : श्रीचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि जिनभद्रसूरि गुणशेखरसूरि श्रीतिलकसूरि गुणचन्द्रसूरि अजितदेवसूरि गुणाकरसूरि (वि.सं. १४२६/ई, सन् १३७० में भक्तामरस्तोत्रवृत्ति के रचनाकार) ६. मातृकाप्रथमाक्षरदोहा - यह अभयदेवसूरि के शिष्य पृथ्वीचन्द्रसूरि की कृति है, जो वि.सं. १४२६ के आस-पास रची मानी जाती है। इसकी प्रशस्ति में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy