SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण / जुलाई-दिसम्बर २००२ भगवान् अरिष्टनेमि की वन्दना की थी। इसके अतिरिक्त इतिहासकारों ने कृष्ण को जब ऐतिहासिक पुरुष माना है तो उनके चचेरे भाई अरिष्टनेमि भी ऐतिहासिक पुरुष ही सिद्ध होते हैं। : - ऋग्वेद में चार स्थलों पर 'अरिष्टनेमि' शब्द व्यवहृत हुआ है और ये चारों ही नाम भगवान् अरिष्टनेमि के लिए प्रयुक्त हुए हैं, ऐसा प्रतीत होता है। कुछ विद्वानों का मत है कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर वेदों में उल्लिखित अरिष्टनेमि को जैनों का अरिष्टनेमि कहना पूर्णतया ठीक नहीं है। जैन परम्परा अरिष्टनेमि को श्रीकृष्ण का गुरु मानती है। इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने छान्दोग्य उपनिषद् में देवकी - पुत्र कृष्ण के गुरु घोर अङ्गीरस के साथ अरिष्टनेमि की साम्यता बताने का प्रयास किया है। " उसका आधार यह माना जाता है कि अङ्गीरस ने कृष्ण को उपदेश देते हुए कहा था कि जब मानव का अन्त निकट हो तो उसे तीन वाक्यों का स्मरण करना चाहिए 'तद्वैतद्द्द्धोर आङ्गिरसः कृष्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचापिपास एव स वभूव सोऽन्तवेलायामेतत्रयं प्रतिपद्येताक्षितमस्यच्युतमसि प्राणस शितमसीति तत्रैते द्वे ऋचौ भवत: '५ प्रस्तुत कथन की तुलना हम जैन आगम अन्तकृत्दशाङ्ग' में आये हुए भगवान् अरिष्टनेमि के भविष्य के कथन से कर सकते हैं। द्वारिका का विनाश और श्रीकृष्ण की जरत्कुमार के हाथ से मृत्यु होगी यह सुनकर श्रीकृष्ण चिन्तित होते हैं तब उन्हें भगवान् इसी प्रकार का उपदेश सुनाते हैं। धर्मानन्द कौशाम्बी का मत है कि अङ्गीरस भगवान् नेमिनाथ का ही नाम था। ऋग्वेद, यजुर्वेद' और सामवेद" में भगवान् अरिष्टनेमि को तार्क्ष्य अरिष्टनेमि कहा गया है— १५ ܢ स्वस्ति नः इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्तिनस्तार्क्ष्योऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिदधातु । । ११ - १२ विद्वानों की यह धारणा है कि वेदों में प्रयुक्त अरिष्टनेमि शब्द २२ वें तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। महाभारत में भी 'तार्क्ष्य' शब्द का प्रयोग भगवान् अरिष्टनेमि के अपर नाम के रूप में हुआ है। यजुर्वेद १४ में अरिष्टनेमि का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि अध्यात्मयज्ञ को प्रकट करने वाले, संसार के भव्य जीवों को सब प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित करता हूँ। १५ महाभारत के अनुशासनपर्व, अध्याय १४९ ( पूना संस्करण १३५.५०,८२) में तथा विष्णुसहस्रनाम में दो स्थानों पर 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' पद का उल्लेख हुआ हैअशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः । । ५० ।। Jain Education International कालनेमिनिहा वीरः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ।। ८२ ॥ विद्वानों की मान्यता है कि प्रस्तुत स्थलों पर “शूरः शौरिर्जनेश्वरः " अरिष्टनेमि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy