SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय प्रत्येक धर्म में आस्था का केन्द्र उपास्य और आदर्श के रूप में किसी महान् व्यक्तित्व को स्वीकार किया जाता है। ऐसे महनीय व्यक्तित्व को हिन्दू-परम्परा में ईश्वरावतार के रूप में, बौद्ध-परम्परा में बुद्ध के रूप में एवं जैन-परम्परा में तीर्थङ्कर के रूप में स्वीकार किया गया है। तीर्थङ्कर जैन-धर्म और जैन-साधना के प्राण हैं। जैन-धर्म का यह विश्वास है कि प्रत्येक कालचक्र में और प्रत्येक क्षेत्र में एक निश्चित संख्या में क्रमश: तीर्थङ्करों का आविर्भाव होता है और वे धर्म मार्ग का प्रवर्तन करते हैं। जैन-धर्म में २४ तीर्थङ्करों की अवधारणा पायी जाती है जो पर्याप्त प्राचीन है। प्राचीन अंग आगमों में 'तीर्थङ्कर' शब्द का उल्लेख उपलब्ध नहीं है; किन्तु उनमें पाये जाने वाले अरहन्त की अवधारणा से ही तीर्थङ्करों की अवधारणा विकसित हुई है। प्राचीन स्तर के जैन-ग्रन्थों में सबसे पहले उत्तराध्ययनसूत्र के २३वें अध्ययन में महावीर और पार्श्व के विशेषण के रूप में “धर्म तीर्थङ्कर जिन' शब्द प्रयुक्त हुआ है। यदि पुरातात्विक साक्ष्यों को देखें तो पटना जिले के लोहानीपुर से तीर्थङ्कर की मौर्यकालीन प्रतिमा उपलब्ध तो हुई है; किन्तु इसे तीर्थङ्कर की अवधारणा के विकसित स्वरूप का प्रमाण नहीं माना जा सकता, क्योंकि मथुरा के अभिलेखों (ईसा पूर्व प्रथम शती से दूसरी शती) में तीर्थङ्कर के स्थान पर 'अरहत' शब्द का प्रयोग देखा जा सकता है। फिर भी उपलब्ध साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों के आधारों से यह ज्ञात होता है कि ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी पूर्व २४ तीर्थङ्करों की अवधारणा सुनिश्चित हो गयी थी। वर्तमान अवसर्पिणी-काल के २४ तीर्थङ्करों में भगवान् अरिष्टनेमि २२वें तीर्थङ्कर माने गये हैं।' ये २३वें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के पूर्ववर्ती तथा कृष्ण के समकालिक माने गये हैं। ऐतिहासिकता- आधुनिक इतिहासकारों ने ऋषभ एवं महावीर के साथ अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता को भी स्वीकार किया है। डॉ० फ्यूरर ने जेनों के २२वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ को ऐतिहासिक व्यक्ति माना है। डॉ० प्राणनाथ विद्यालङ्कार ने काठियावाड़ में प्रभासपाटन से प्राप्त एक ताम्रपत्र को पढ़कर बताया है कि वह बाबुल देश के सम्राट नेबुशदनेज़र ने उत्कीर्ण कराया था, जिनके पूर्वज देवानगर के राज्याधिकारी भारतीय थे। सम्राट नेबुशदनेज़र ने भारत में आकर गिरनार पर्वत पर *. वरिष्ठ प्रवक्ता, जैन विद्या विभाग, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy