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________________ इतिहास की गौरवपूर्ण विरासत : काँगड़ा के जैन मन्दिर महेन्द्रकुमार मस्त महाभारतकाल से वर्तमान तक, इतिहास के वैभव व गरिमा के प्रतीक तीर्थकाँगड़ा के जैन मन्दिर व भग्नावशेष उस गौरवपूर्ण विरासत की यादगार हैं जिन पर प्रत्येक व्यक्ति नाज़ कर सकता है। पिंजौर, नादौन, नूरपुर, कोठीपुर, पालमपुर और ढोलबाहा से मिले जैन चिह्न, तीर्थङ्कर प्रतिमाएं तथा मन्दिरों के अवशेषों से यह बात स्पष्ट है कि यह क्षेत्र अपने अतीत से विक्रम की १७वीं सदी तक जैन आचार्यों, मुनियों व श्रावकों के क्रिया-कलापों का केन्द्र रहा है। सप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पद्मश्री जिनविजयजी ने काँगड़ा को अष्टापद (कैलाश) की तलहटी माना है। (वर्तमान किन्नौर जिले को वहाँ के लोग अब तक 'किन्नर कैलाश' ही कहते हैं)। हिमाचल की देवभूमि के नैसर्गिक सौन्दर्य की सुरम्य घाटी में, काँगड़ा तीर्थ अपनी समृद्ध ऐतिहासिक व सांस्कृतिक गरिमा और धार्मिक महत्ता के कारण बरबस ही जन-जन के आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन व कलात्मक मन्दिर अपने आपमें हजारों वर्षों के इतिहास को समेटे हुए हैं। भारतीय पुरातत्व के पितामह सर अलेक्जेन्डर कनिंघम ने १८७२ ई० में काँगड़ा का निरीक्षण करके जो रिपोर्ट दी उसके अनुसार “काँगड़ा किले में भगवान् पार्श्वनाथ का एक मन्दिर है, जिसमें आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव की भव्य मूर्ति विराजमान है।" अपने अधखुले ध्यानस्थ नेत्रों, कन्धों तक गिरते केश तथा शान्त मुखमुद्रा वाली भगवान् ऋषभदेव की यह विशाल प्रतिमा, काँगड़ा किले की बुलन्दी से मानव सभ्यता के उत्थान और विकास का सदियों से निरन्तर आह्वान देती रही हैं। किले के अन्दर यत्र-तत्र बिखरे हुए विशाल जैन मन्दिरों के खण्ड, देहरियां, कमरे, पट्ट, स्तम्भ व तोरणों की शिलाएँ ई०सन् १९०४ के विनाशकारी भूकम्प की कहानी की याद बने हुए हैं। कुछ बची हुई दीवारों पर पत्थरों में उत्कीर्ण जिन-प्रतिमाएँ आज भी देखी जा सकती हैं। पुराना काँगड़ा के कुछ तालाबों व घरों पर भी मूर्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। सन् १९१५ में बीकानेर व पाटण के हस्तलिखित पुरातन ग्रन्थ भण्डार का *. २६३, सेक्टर १०, पंचकूला-१३४१०९ हरियाणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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