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________________ 'अग्रवाल' शब्द की प्राचीनता विषयक एक और प्रमाण : ५३ प्राचीन उल्लेख डॉ० परमेश्वरी लाल गुप्त के अनुसार मौलाना दाऊदकृत अनफीकाव्य चन्दायन (रचना-काल वि०सं० १४२६, ईस्वी सन् १३६९) में हुआ है, किन्तु इससे पहले भी अग्रवाल शब्द का उल्लेख सं० १४११ (सन् १३५४ ई०) में सधारु कवि द्वारा रचित प्रद्युम्नचरित्र में मिलता है। उक्त रचना में कवि ने अपना परिचय देते हुए बतलाया है कि "मेरी जाति अग्रवाल है, जिसकी उत्पत्ति अगरोवे नगर से हुई। मेरी माता का नाम गुणवइ (गुणवति) और पिता का नाम शाह महाराज है। एयरछ नगर में बसते हुए मैंने इस चरित्र को सुनकर पुराण की रचना की।'३ इस परिचय में 'अग्रवाल' शब्द की प्राचीनता के साथ अग्रोहा से ही इस जाति की उत्पत्ति की धारणा पुष्ट होती है, जो वास्तविक है। सं० १४११ (सन् १३५४ई०) से प्राचीन 'अग्रवाल' शब्दोल्लेख की खोज करते हुए इससे पहले का 'अग्रवाल' शब्द का प्राचीन उल्लेख भी हस्तगत हुआ। यह उल्लेख एक जैन प्रतिमा लेख में मिला, जो वि० सं० १२३४ (ईस्वी सन् ११७७) का है। उक्त प्रतिमा लेख इस प्रकार है "सं० १२३४ वर्षे मास कार्तिक सुदी १ गुरुवासरे भट्टारक आम्नाय सा० बुधमल अग्रवाल गर्गगोत्री प्रतिष्ठाणाम् मंगलं मंगलाणं विमल अष्टसिद्धि नवनिधिदायक बिंबस्थापनं। गुरु आचार्जकात्र।" ___ यह लेख मैनपुरी (कटरा) के दिगम्बर जैन मन्दिर में विराजमान भगवान् चन्द्रप्रभ की मूर्ति पर उत्कीर्ण है, जो सं० १४११ से १७७ वर्ष पहले का है। अभी तक की जानकारी के अनुसार इसी प्रतिमा-लेख में अग्रवालों के गोत्रों में से एक गोत्र ‘गर्ग' का प्राचीनतम उल्लेख मिला है। उपर्युक्त प्रतिमा-लेख के आधार पर मैंने “अग्रवाल शब्द की प्राचीनता' शीर्षक लेख लखनऊ से प्रकाशित होने वाली शोध-पत्रिका शोधादर्श- २२ (मार्च १९९४ ईस्वी) में प्रकाशित कराया था। (देखें, उक्त अंक, पृष्ठ ६३) अब इससे पूर्व के 'अग्रवाल' शब्दोल्लेख की खोज की जानी थी। मैं इस ओर प्रयासरत रहा और हर्ष की बात है कि मुझे इसमें सफलता हाथ लगी। यह उल्लेख भी एक जिन प्रतिमा पर उत्कीर्ण है, जो कोटा के राजकीय संग्रहालय में संरक्षित है। यह लेख वि०सं० ११८० (ईस्वी सन् ११२३ ई०) का है और धारा के परमारनरेश नरवर्मदेव के काल का है। नरवर्मदेव का शासन काल वि०सं० ११५१-११९० (ईस्वी सन् १०९४-११३३) तक है। लेख का मूल पाठ इस प्रकार है __ "श्री नरवर्मदेव राज्ये संवत ११८० आषाढ़ वदि १ अग्रवालान्वय साधु जिनपालसुत यमदेव: पु......।" उक्त लेख में 'अग्रवाल' के साथ संस्कृत शब्द 'अन्वय' का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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