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________________ जैनाचार्यों का छन्द-शास्त्र को अवदान : ४७ १३ संयुक्त छन्द विवेचित हैं। इस ग्रन्थ में ६९ उदाहरण हैं, जो सम्भवत: ग्रन्थकार विरचित हैं। छन्दों के लक्षण, निर्देश और वर्गीकरण में कविदर्पणकार की मौलिक दृष्टि का परिचय मिलता है। इसमें छन्दों के लक्षण और उदाहरण अलग-अलग प्राप्त होते हैं। इस पर एक अज्ञातकर्तृक वृत्ति है। ग्रन्थ और वृत्ति दोनों में हेमचन्द्र के छन्दोऽनुशासन के उद्धरण प्राप्त होते हैं। छन्दोऽनुशासन के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में रत्नावलीनाटिका (श्रीहर्ष) तथा जिनचन्द्रसूरि, सूरप्रभसूरि और तिलकसूरि की कृतियों से उद्धरण प्राप्त होते हैं। साथ ही बारहवीं-तेरहवीं शती में विद्यमान सिद्धराज जयसिंह, कुमारपाल, समुद्रसूरि, भीमदेव, तिलकसूरि, शाकम्भरीराज और यशोघोषसूरि के नाम उपलब्ध होते हैं। कविदर्पणवृत्ति कविदर्पण पर अज्ञात जैन विद्वान्कृत वृत्ति (सन् १३०८) प्राप्त होती है। इस वृत्ति में प्राप्त सभी ५७ उदाहरण अन्यकर्तक हैं। इसमें सूर, पिङ्गल और लोचनदास की संस्कृत कृतियों और स्वम्भ, पादलिप्तसरि, मनोरथ आदि विद्वानों की प्राकृत कृतियों से अवतरण दिये गये हैं। वृत्ति में रत्नसूरि, सिद्धराज जयसिंह, धर्मसूरि और कुमारपाल के नामों का उल्लेख है। छन्दःकन्दली . अज्ञातकर्तृक प्राकृत-भाषा में निबद्ध इस ग्रन्थ में कविदर्पण की परिभाषा का उपयोग किया गया है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। कविदर्पण की टीका में छन्दःकन्दली को तीन-चार बार उद्धृत किया गया है। छन्दःकोश२१ यह कृति नागपुरीय तपागच्छ के हेमतिलकसूरि के शिष्य रत्नशेखरसूरि (लगभग १५वीं शती) द्वारा ७९ गाथाओं में विरचित है। छन्दशास्त्रकार का लक्ष्य अपभ्रंश कवियों द्वारा बहुलता से प्रयुक्त होने वाले अपभ्रंश छन्दों का लक्षण निबद्ध, करना था। इसमें उपलब्ध अनेक लक्षण पूर्ववर्ती छन्दकारों से लिए गये हैं। इस ग्रन्थ में पद्य १-४ तथा पद्य ५१-७४ परिनिष्ठित प्राकृत में निबद्ध हैं जबकि पद्य ८-५० भिन्न शैली में निबद्ध है। इनकी भाषा परवर्ती अपभ्रंश शैली की परिचयिका है। प्रो० वेलणकर का अभिमत है कि इनमें से अधिकांश को रत्नशेखर ने अन्य ग्रन्थकारों से उद्धृत किया है। इस ग्रन्थ पर छन्दकोशवृत्ति (संस्कृत) और छन्दःकोश बालावबोध (गुजराती) उपलब्ध हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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